
Corona virus, सत्यकेतन समाचार : कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देश भर में लॉकडाउन किया गया है. दिल्ली में भी इसे देखते हुए 23 तारीख से लॉकडाउन किया गया है सीमाओं पर आवाजाही के लिए कर्फ़्यू पास अनिवार्य कर दिया गया है.
लॉकडाउन के साथ ही दिल्ली में काम करने वाले कई मज़दूर बाहर अपने राज्य लौटने लगे. जब बस और रेल बंद हो गईं तो वो पैदल ही अपने घरों के लिए निकल गए.
दिल्ली में अब तक कोरोना वायरस के 39 मामले सामने आ चुके हैं.
दिल्ली के सबसे कमजोर वर्ग के सामने लॉकडाउन के चलते खाने की समस्या पैदा हो गई है. ये वर्ग अपनी पेट भरने की ज़रूरत से जूझ रहा है और आगे मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं.
इस रिपोर्ट को सीपीआर में सीनियर रिसर्चर अश्विनी पारुलकर और फेलो मुक्ता नायक ने तैयार किया है.
मुक्ता नायक ने बताया, “कई जगहों से ये ख़बर आ रही थी कि शेल्टर होम्स में खाने के लिए भीड़ बहुत बढ़ गई थी, लोगों को राशन नहीं मिला रहा था और बाहर से आए कामगार पैदल वापस लौट रहे थे लेकिन सीमा बंद होने के कारण वो जा नहीं पा रहे थे. मजदूरों और अप्रवासियों की ये जो कई सारी समस्या आ रही थी इसे देखते हुए एक ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की गई.”
मुक्ता नायक बताती हैं कि इस रिपोर्ट के लिए शेल्टर चलाने वाली एजेंसियों, कम्यूनिटी के लोगों, गैर-सरकारी संस्थाओं और मजदूर यूनियनों से बात की गई और इससे कई महत्वूपर्ण बातें निकलकर सामने आईं.
Corona virus – इस रिपोर्ट के मुताबकि ये बातें सामने आईं-
– कामगारों और दिल्ली में रह रहे प्रवासियों की इस वक़्त सबसे बड़ी समस्या भूख की है यानी खाने की कमी की है. दैनिक मजूदरों के पास दो-तीन दिनों से ज़्यादा राशन का पैसा हाथ में नहीं होता और 22 तारीख से लॉकडाउन शुरू हो गया था तो अब तक उनके पास खाने का पैसा ख़त्म हो गया होगा. वो खाना ढूंढने के लिए ईधर से उधर जा रहे हैं.
– जैसे ही नाइट शेल्टर्स में खाना देने की घोषणा हुई तो वो लोग शेल्टर्स की तरफ बढ़ने लगे और शेल्टर्स में भीड़ बहुत बढ़ गई. शेल्टर में खाना सीमित होता है तो जो लोग शेल्टर में पहले से मौजूद हैं और जो बाद में आए उनमें झगड़ा भी हुआ.
– उत्तर पूर्वी दिल्ली में हालात सबसे ज़्यादा ख़राब हैं. कोरोना वायरस को देखते हुए यहां पर राहत शिविर हटा दिये गये हैं. इसके कारण लोगों को अपने पुराने जले हुए और टूटे घरों में लौटना पड़ रहा है. उनके पास खाने-पीने की भी ठीक से व्यवस्था नहीं है. वो एक महीने से ज़्यादा समय से तनावभरे माहौल में रह रहे हैं.
– राशन की घर-घर डिलीवरी होगी इसकी घोषणा हुई थी लेकिन ये अभी शुरू नहीं हो पाया है.
– शेल्टर के साथ भरपाई (रिइंबर्समेंट) के आधार पर करार होता है. शेल्टर को कहा गया था कि वो खाना बनाएं फिर उनके खर्चे की भरपाई कर दी जाएगी. लेकिन, शेल्टर होम्स की इतनी क्षमता नहीं है कि वो अपने खर्चे पर इतना खिला पाएं. साथ ही खाने की समान की ठीक से आपूर्ति भी नहो पा रही थी. इससे उन लोगों के जीवन को भी ख़तरा था जो लोग शेल्टर होम्स में काम करते हैं.
– शेल्टर्स होम्स में एक दिक्कत ये भी हुई कि वहां लोगों की भीड़ इतनी बढ़ गई कि लॉकडाउन का सोशल डिस्टेंसिंग का मकसद ही ख़त्म हो गया.
– शेल्टर होम्स की संख्या भी कम है. जहां औद्योगिक कामगार रहते हैं पर शेल्टर ज़्यादा नहीं हैं.
– रिपोर्ट में दिया गया है कि जनता कर्फ्यू वाले दिन 22 मार्च को ही सभी शेल्टर होम्स में खाने खिलाने के आदेश दे दिए गए थे. आदेश के साथ ही सोसाइटी फॉर प्रमोशन ऑफ यूथ एंड मासेस (एसपीवाईएम) ने अपने 60 शेल्टर होम्स में तीन हजार बेघर लोगों के खाने और हाईजीन की व्यवस्था करनी शुरू कर दी थी. लेकिन, वो काफी नहीं था.
– एसपीवाईएम के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर डॉक्टर राजेश कुमार का कहना है, “हम अपने इलाक़े के आसपास के बेघर लोगों को खाना खिलाने के लिए तैयार थे. लेकिन, वहां दूसरे इलाक़ों से भी लोग आ गए और सामान कम पड़ गया.”
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