Corona Lockdown Update: लॉकडाउन बढ़ाना मजबूरी है या फिर ग़ैर-ज़रूरी?

Corona Lockdown Update: लॉकडाउन बढ़ाना मजबूरी है या फिर ग़ैर-ज़रूरी?

Corona Lockdown Update: लॉकडाउन बढ़ाना मजबूरी है या फिर ग़ैर-ज़रूरी?
Corona Lockdown Update: लॉकडाउन बढ़ाना मजबूरी है या फिर ग़ैर-ज़रूरी?

Corona Lockdown Update, सत्यकेतन समाचार : 14 अप्रैल को 21 दिन का लॉकडाउन ख़त्म होने वाला है। इसको आगे बढ़ाया जाए या नहीं इसे लेकर अलग-अलग पक्ष सामने आ रहे हैं।

देश के ज़्यादातर राज्य इसे बढ़ाने की बात कह रहें हैं। कर्नाटक ने ही केवल सामने आकर ये बात कही है कि जिन इलाक़ों में कोरोना संक्रमण के एक भी मामले सामने नहीं आए हैं, उनमें लॉकडाउन खोल देना चाहिए।

हालांकि बाक़ी कोरोना संक्रमित ज़िलों में चरणबद्ध तरीक़े से लॉकडाउन लागू रहे, इसके पक्ष में वो भी है।

लॉकडाउन बढ़े या ख़त्म हो जाए – इसको लेकर कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल ने आज एक सर्वे जारी किया है। इस सर्वे में तकरीबन 26000 लोगों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया। इसमें से तकरीबन 63 फ़ीसदी लोगों की राय थी कि लॉकडाउन कुछ प्रतिबंध के साथ ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।

पूर्ण लॉकडाउन ख़त्म करने के पक्ष में देश के अर्थशास्त्री ही बात कर रहे हैं, जबकि देश के डॉक्टर इसे और आगे बढ़ाने की बात कर रहें हैं। दोनों पक्ष के पास अपने तर्क हैं।

क्या पूर्ण लॉकडाउन बढ़ना ग़ैर-ज़रूरी है?

देश के जाने माने अर्थशास्त्री हैं शंकर आचार्य। वो भारत सरकार में मुख्य वित्तीय सलाहकार भी रह चुके हैं।

बीबीसी से उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने जब पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की थी उसे पीछे तीन मक़सद थे।

  • पहला चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन को ब्रेक करना
  • दूसरा लोगों को इस बीमारी की गंभीरता समझाना
  • तीसरा, तीसरे चरण के लिए तैयारी करना

शंकर आचार्य बाक़ी अर्थशास्त्रियों की तरह 21 दिन के लॉकडाउन को सही मानते हैं। वो बस इसे आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं है।

उनका तर्क है कि तीनों उद्देश्य 21 दिन में पूरे हो जाने चाहिए और अगर सरकार को लगता है कि जनता अब तक इसे नहीं समझ पाई है, तो आगे लॉकडाउन बढ़ा कर इसे हासिल कर लेगी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता।

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) का अध्ययन बताता है कि बड़े शहरों में कमाने -खाने वाली आबादी में से 29 फीसदी लोग दिहाड़ी मज़दूर होते हैं।

वहीं, उपनगरीय इलाक़ों की खाने-कमाने वाली आबादी में दिहाड़ी मज़दूर 36 फ़ीसदी हैं।

गाँवों में ये आँकड़ा 47 फ़ीसदी है जिनमें से ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर हैं।

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इन आँकड़ों से साफ़ जाहिर है कि देश में इतनी बड़ी आबादी को लॉकडाउन बढ़ने पर रोज़गार नहीं मिलेगा। ऐसे में उनकी परेशानी और बढ़ेगी। सरकार ने बेशक इनके लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन वो कितने पर्याप्त हैं, इस पर भी सवाल है।

शंकर आचार्य ने बताया कि रोज़ कमा कर खाना ही दिहाड़ी मज़दूरों के लिए एकमात्र विकल्प है। इनके कामकाज का अभाव इन्हें जीते जी मार रहा है।

उनके मुताबिक सरकार राहत पैकेज की जितनी मर्जी घोषणा कर लें, लोगों तक पहुंचाने के लिए उनके पास संसाधन नहीं है।

ज़रूरी सामान की सप्लाई चेन बहाल रखने में भी इनका योगदान ज़रूरी है। आख़िर सामान बनेंगे नहीं तो हम तक पहुंचेंगे कैसे?

 

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