USA vs China: अमेरिका पर कोरोना का कहर, क्या चीन बन सकता है दुनिया की महाशक्ति?

USA vs China: अमेरिका पर कोरोना का कहर, क्या चीन बन सकता है दुनिया की महाशक्ति?

USA vs China: अमेरिका पर कोरोना का कहर, क्या चीन बन सकता है दुनिया की महाशक्ति?
USA vs China: अमेरिका पर कोरोना का कहर, क्या चीन बन सकता है दुनिया की महाशक्ति?

USA vs China, सत्यकेतन समाचार: कोरोना ने दुनिया का राजनितिक और भौगोलिक समीकरण ही दांव पर लगा दिया है। लिहाज़ा अब ऐसी बातें सामने आ रही हैं कि इस महामारी के बादल छटने के बाद दुनिया की तस्वीर ही बदल जाएगी। बहुत मुमकिन है कि अमेरिका का सुपरपॉवर का तमगा भी छिन जाए और दुनिया का पॉवर सेंटर वेस्ट से ईस्ट की तरफ हो जाए यानी चीन की तरफ। क्योंकि मौजूदा हालात को देखते हुए साफ है कि कोरोना से बचने के लिए दुनिया चीन की शरण में जा रही है।

अगर दुनिया के नक्शे को देखा जाए तो अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों को छोड़कर तकरीबन बाकी दुनिया कोरोना के इस लाल खतरे की जद में है। इस लाल रंग के कई मायने भी हैं। चूंकि लाल रंग कम्यूनिस्टों का रंग है और चीन एक कम्यूनिस्ट देश है। इसलिए नक्शे में जहां-जहां ये लाल रंग नज़र आ रहा है। समझिए वहां-वहां चीन ने अपना प्रभाव छोड़ दिया है और अब इस खतरे के निशान से चीन ही है, जो दुनिया को बचा सकता है।

आज अमेरिका समेत पूरी दुनिया इस जानलेवा वायरस की वजह से चीन की तरफ झुकी हुई नज़र आ रही है। इन सभी देशों को कोरोना से लड़ने के लिए चीन का एक्सपीरियंस और उसके मेडिकल इक्वेपमेंट की ज़रूरत है। अमेरिका से लेकर यूरोप तक और इंग्लैंड से लेकर ईरान तक सभी इस महामारी से बचने के लिए चीन की मदद ले रहे हैं।

ये वही इटली है जो अमेरिका के प्रभाव में कोरोना के शुरुआती दौर में उसे चीनी वायरस कह रहा था। तब चीन बदनामी के डर से उससे ये गुज़ारिश कर रहा था कि ये एक महामारी है और वो इस वायरस को उसके मुल्क से ना जोड़ें। मगर देखते ही देखते वक्त ने ऐसी करवट ली कि अब इटली कोरोना से लड़ने के लिए चीन के सामने मदद के लिए गिड़गि़ड़ा रहा है।

इतना ही नहीं अमेरिका के बाद स्पेन जो इस महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित है। वो भी चीन की शरण में है। और चीन से अब तक करीब 432 मिलियन यूरो यानी करीब 36 अरब रुपये का मेडिकल इक्वेपमेंट खरीद चुका है। यहां तक कि अमेरिका भी अब चीन के सामने झुक गया और वो भी कोरोना से लड़ने के लिए चीनी इक्वेपमेंट आयात कर रहा है। अपनी तसल्ली के लिए आप अमेरिकी अखबारों की हेडलाइन्स पर भी एक नज़र डाल सकते हैं। जिसमें लिखा है कि व्हाइट हाउस ने कोरोना से लड़ने के लिए चीनी इक्वेपमेंट को मंज़ूरी दे दी है।

इसके अलावा चीन ईरान और कनाडा को भी मेडिकल इक्वेपमेंट मुहैया करा रहा है। अब ज़ाहिर है चीन जैसा देश समाज सेवा तो कर नहीं रहा है। बल्कि वो इस मौके को भुनाकर दुनिया पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। और माल बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था मज़बूत कर रहा है वो अलग। कुल मिलाकर दुनिया के 50 से ज़्यादा ऐसे देश हैं, जो कोरोना की ये जंग चीन के भरोसे लड़ रहे हैं। और चीन भी उनकी खुशी खुशी मदद कर रहा है। क्योंकि वो जानता है कि ये महामारी जब तक चलेगी। तब तक उसकी अर्थव्यवस्था मज़बूत होती जाएगी। और दुनिया की इकॉनमी कमज़ोर होती जाएगी। इस तरह वो बेहद कम वक्त में दुनिया की सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्था बन जाएगा। जिसके बाद सुपरपावर बनने का रास्ता बेहद आसान है।

आपको बता दें कि चीन दुनिया का मैन्यूफैक्चरिंग हब है। यानी दुनिया में सबसे ज़्यादा मैन्यूफैक्चरिंग चीन में ही होती है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं हैं जो इस मामले में चीन का मुकाबला कर सके। लिहाज़ा ये थ्योरी काफी हद तक सही नज़र आ रही है कि चीन हेल्थ केयर की एक सिल्क रोड बनाकर दुनिया में अपना दबदबा कायम करने की कोशिश कर रहा है। मगर ये कहानी का सिर्फ एक पहलू है। कहानी का दूसरा पहलू तो अभी बाकी है। ये बहुत दिलचस्प भी है और इसे जानना भी बेहद ज़रूरी है।

इस कहानी का दूसरा पहलू शुरू होता है साल 2017 से जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नई नेशनल सिक्युरिटी स्ट्रैटेजी की घोषणा की थी। इसका मकसद था दुनिया में आयात-निर्यात में कंप्टीशन बढ़ाने पर ज़ोर देना, क्योंकि वो जानते थे कि अगर कंप्टीशन बढ़ा तो दुनिया का कोई भी देश खासकर चीन उन्हें हराने की स्थिति में नहीं होगा। इसके बाद से ही चीन और अमेरिका एक दूसरे के आमने-सामने आ गए थे और तब आया कोरोना वायरस।

दुनिया पर अचानक आई इस महामारी के बाद हालात ऐसे बदले कि कंप्टीशन का मौका ही नहीं आया। और अमेरिका कंप्टीशन से पहले ही हार मान गया। अब तो सच ये है कि वो कंप्टीशन की हैसियत ही नहीं रखता है। क्योंकि अभी तो वो उन लाखों मरीज़ों से ही जूझ रहा है जो उसके देश में कोरोना से संक्रमित हैं। और आने वाले दो हफ्ते तो अमेरिका पर इतने भारी पड़ने वाले हैं कि वो अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता है। ऐसा हुआ तो मानकर चलिए अमेरिका की इकॉनमी पर बहुत बुरा असर पड़ने वाला है।

सुपरपावर बनने और दुनिया पर दबदबा बनाने की सारी जंग ही इकॉनमी पर टिकी हुई है। और अब अमेरिका के मौजूदा हालात ये हैं कि पूरी दुनिया की इकॉनमी कैपिटल माने जाने वाला न्यूयॉर्क कोरोना का एपिसेंटर बन चुका है और पूरी तरह से लॉकडाउन है। वहां पिछले कई दिनों से किसी तरह की इकॉनमिक मूवमेंट नहीं हुई है। और ये तब है जब अमेरिका में कोरोना के मामले अभी पीक पर नहीं पहुंचे हैं। चीन इस मौके का फायदा उठा रहा है और धड़ाधड़ यूरोपियन और अमेरिकी कंपनियों के गिरते हुए शेयर 30% से भी कम कीमत पर खरीद रहा है।

जानकार अभी से अंदाज़ा लगा रहे हैं कि कोरोना की वजह से अमेरिका और यूरोप में आने वाले दो क्वार्टर यानी 6 महीने मंदी का दौर रहेगा। और ये भी भविष्यवाणी की जा रही है कि अमेरिका में साल 2008 में आए मंदी के दौर से ये मंदी कहीं भयानक होगी। ये दावे इसलिए भी डराने वाले हैं क्योंकि आज दुनिया के हर 4 में से 3 अर्थशास्त्री इसकी तस्दीक कर रहे हैं। यानी एक तरफ तो जहां अमेरिका कोरोना से लड़ने में जूझ रहा है। वहीं दूसरी तरफ उसकी इकॉनमी हर गुज़रते दिन के साथ हाथ में रेत की तरह फिसलती जा रही है।

कोरोना के सामने अमेरिका की इस बेबसी की वजह से दुनिया में एक वैक्यूम यानी खालीपन सा महसूस किया जा रहा है। इसे इस तरह से समझिए कि अब तक दुनिया का सुपरपॉवर देश यानी अमेरिका ये तय करता था कि दुनिया के हालत क्या होंगे और उसका झुकाव किस तरफ होगा। मगर अब जब खुद सुपरपॉवर कोरोना वायरस के सामने घुटनों पर है। तो वो दूसरों को क्या रास्ता दिखाएगा। आज तो वो इस महामारी से खुद को ही बचा ले यही उसके लिए बहुत है।

कोरोना के सामने अमेरिका की लाचारगी की वजह से इस खाली जगह पर चीन कब्ज़ा करता जा रहा है। यानी दुनिया के तमाम देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने के साथ साथ। वो अब तय कर रहा है कि आगे दुनिया किस करवट बैठेगी। इसी को तो सुपरपॉवर कहते हैं। हालांकि अमेरिका सुपरपॉवर होने का खिताब खोएगा या चीन दुनिया का नया सुपरपॉवर बनेगा ये कोरोना की इस महामारी के खत्म होने के बाद ही तय होगा।

अब इस कहानी का एक और पहलू समझिए जो कहता है कि चीन ने कोरोना को लेकर जिस तरह का रवैया दिखाया उससे वैश्विक तौर पर उसकी इमेज बहुत खराब हुई है। और कोरोना के खत्म होने के बाद दुनिया उससे गिन-गिनकर बदला लेगी। क्योंकि चीन ने ना सिर्फ इस महामारी की खबर को दुनिया से छुपाया बल्कि उसने खुद अपने ही लोगों को धोखे में रखा। ऐसी बहुत सी तस्वीरें, वीडियो और जानकारियां हैं, जो इस तरफ इशारा कर रही हैं कि चीन का रवैय्या ना सिर्फ गैरज़िम्मेदाराना था बल्कि शक के दायरे में भी आता है।

जिस तरह कोरोना के व्हिसलब्लोवर डॉ ली को चीन ने चुप करवाया और उसके फौरन बाद वो खुद इस वायरस से इंफेक्टेड हो कर अपनी जान गंवा बैठे, उससे शक़ पैदा होता है। चीन खुद तो बदनाम हुआ ही उसने WHO की विश्वसनियता भी खतरे में डाल दी। ऐसे इल्ज़ाम हैं कि चीन ने अपने प्रभाव की वजह से डब्लूएचओ के साथ मिलकर कोरोना के मामले को दबाया। और बहुत मुमकिन है कि चीन अभी भी दुनिया को गलत या अधूरी इंफोर्मेशन दे रहा हो। क्योंकि चीन ने जो किया वो तो दुनिया के बाकी देश भी कर रहे हैं। मगर वहां तो हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे।जो कोरोना वायरस चीन के एक सूबे तक ही महदूद रह सकता था। उसे चीन ने लापरवाही या स्ट्रैटेजी के तहत महामारी बनने

दिया। और अब ये पैनडेमिक यानी वैश्विक महामारी बन चुका है। अमेरिका में फ्लोरिडा की एक लॉ फर्म ने तो चीन पर ये कहते हुए 20 ट्रिलियन डॉलर का केस भी कर दिया कि कोरोना वायरस दरअसल चीन का बॉयोलॉजिक वेपन है। ईसीजे यानी इंटरनेशन कमिशन ऑफ जूरिस्ट ने भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन से पूरी दुनिया को हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा है। इस लिहाज़ से तो लगता है कि इस महामारी के दौरान चीन भले अपनी इकॉनमी बढ़ा ले। मगर वो दुनिया की महाशक्ति यानी सुपरपॉवर नहीं बन पाएगा। दुनिया उसे उसकी करतूतों की वजह से बनने नहीं देगी और अगर वो बन भी गया तो विश्वयुद्ध जैसे हालात बन जाएंगे।

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