
कोरोना त्रासदी और रूस- यूक्रेन युद्ध यह सारी वैश्विक समस्याएं एक नई विश्व व्यवस्था के उदय का संकेत दे रही हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति से लेकर शीत युद्ध की समाप्ति तक विश्व व्यवस्था मूलतः अमेरिका और सोवियत संघ के इर्द-गिर्द केंद्रित रही शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात अमेरिका विश्व की केंद्रीय शक्ति बना। तीन दशक पहले जब सोवियत संघ का विघटन हो रहा था तो उस समय यह उम्मीद की जा रही थी कि उदारवाद की भिन्न विचार धाराएं तथा राजनैतिक व्यवस्थाओं के बीच युद्ध अब लगभग समाप्त हो जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ। मजबूत राष्ट्रवादी विचारधारा के बढ़ते वैश्विक प्रभाव ने दुनिया के क्षितिज पर एक नई आक्रोश- वादी राजनीति शुरू कर दी है। कोरोना त्रासदी के समय जिस तरह विश्व के शक्तिशाली राष्ट्र कमजोर नजर आए वहीं दूसरी ओर एशिया के कई देश यूरोप और अमेरिका के देशों को सहायता दे रहे थे जो एक नई वैश्विक व्यवस्था दर्शाते हैं पहले सहायता यूरोप और अमेरिका के देश देते थे लेकिन अब विपत्ति के समय एशिया के देश ऐसा कर रहे थे। यदि हम यूक्रेन के संकट की बात करें तो इस युद्ध ने कई वैश्विक संस्था और विकसित लोकतांत्रिक राष्ट्रो की साख पर कुठाराघात किया है अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्र इस युद्ध को रोकने में असमर्थ दिख रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि संयुक्त राष्ट्र संघ, अमेरिका कोई युद्ध रोकने में असफल हुए हैं इससे पहले अफगानिस्तान युद्ध, सीरिया युद्ध, ईरान- अमेरिका विवाद, ईरान- इजरायल विवाद ,को सुलझाने में भी असफल रहे हैं ।
यह मुद्दे संयुक्त राष्ट्र संघ की क्रियाशीलता और अमेरिका की शक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस – यूक्रेन युद्ध में रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं स्विफ्ट वैश्विक भुगतान प्रणाली पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया है इसके अलावा एप्पल ,गूगल ,स्टरलिंक यूनिवर्सल, पैरामाउंट, जैसी कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद कर दिया है हालांकि इन प्रतिबंधों से रूस की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान होगा यह तो आने वाले महीनों में ही स्पष्ट होगा । रूस – यूक्रेन संकट ने नाटो और संयुक्त राष्ट्र संघ संगठन की कमियां और अमेरिका की कमजोरियां विश्व पटल के सम्मुख रख दी हैं यूरोप और उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप के किसी भी देश में रूस से सीधे तौर पर संघर्ष करने की स्थिति नहीं है कुछ पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियार जरूर दे रहे हैं पर क्या यह हथियार यूक्रेन को रूस के हमलों से बचा पाएंगे।
वर्तमान समय में यदि आप गौर करें तो कई ऐसे उदाहरण और मिलेंगे जिन से पता चलता है कि शक्ति का केंद्र अब अमेरिका नहीं रहा है विश्व पटल पर नई नई व्यवस्था जन्म ले रही हैं बीजिंग विंटर ओलंपिक मैं अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने इन खेलों का बहिष्कार की एक मुहिम छेड़ रखी थी लेकिन अमेरिका की मंशा के विरुद्ध 30 देशों के प्रमुख वहां इकट्ठे हुए इनमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात , कतर जैसे मुल्कों के साथ-साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी बीजिंग में विंटर ओलंपिक के उद्घाटन में मौजूद थे इससे पता चलता है कि अमेरिका को अब कई देश ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं यदि भारत की बात करें तो अमरीकी नाराजगी के विपरीत भारत ने रूस से S-400 मिसाइल आखिरकार खरीद ही ली। दक्षिणी चीन सागर में चीन अमेरिका की बात को दरकिनार करते हुए ताइवान के वायु क्षेत्रों में अपने लड़ाकू विमान भेज देता है इस पर भी अमेरिका कुछ नहीं कर पाता है। यही नहीं अफगानिस्तान में कई सालों तक सैन्य अभियान चलाने के बावजूद भी आज अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है।
अब प्रश्न उठता है क्या एक ध्रुवीय ताकत अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ, नाटो, यूरोपीय संघ, में दुनिया को चलाने की क्षमता है? क्या यह विश्व की लोकतांत्रिक सरकारों की रक्षा कर सकते हैं ? क्या अमेरिका और यह सभी संस्थान विश्व के नागरिकों को वैश्विक आतंकवाद और युद्धों से बचाने में सक्षम है? क्या वह वैश्विक बीमारियां, ग्लोबल वार्मिंग ,प्रदूषण ,गरीबी, भुखमरी अकाल, न्यूक्लियर हथियारों की बढ़ती हुई होड़ से विश्व को बचाने में सक्षम है ?
सुनील कुमार
अध्यापन में कार्यरत, कंटेंट राइटर और ब्लॉगर