परदे के पीछे, लेखिका, रॉकी गुप्ता

लेखिका, रॉकी गुप्ता: “परदे के पीछे’’ शीर्षक में मेरा अभिप्राय उस परदे से नहीं है जिसको स्त्रियाँ अपने घर में बड़े बूदों की मान मर्यादा और सम्मान का पालन करने के लिए अपने सिर पर रखती है, उसके द्वारा उनको सम्मान देती हैं और जो कि हमारी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है! न ही परदे से मेरा तात्पर्य उस बड़े से कपडे से है जिसको घर की मर्यादा के प्रतीक के रूप में घर के दरवाजे पर टांग दिया जाता है, जिससे घर के अन्दर की बात घर के अन्दर ही रह जाती है। यहाँ पर परदे से मेरा अभिप्राय उन सीमाओ और हिचकिचाहटों से है जिनको हमारे देश की स्त्रियाँ अपना भाग्य मानकर बैठ गयी हैं और उनको ऐसा लगता है कि अब उनका इस जीवन में कुछ नहीं हो सकता है या फिर कोई चार हाथ-पैर वाला ईश्वर ही अपने दर्शन देकर उनको किसी कार्य के लिए प्रेरित कर सकता है, और उनके जीवन को सफल बना सकता है। मै अपना लेख उन सभी स्त्रियों को समर्पित करती हूँ जो आज भी किसी की प्रतीक्षा कर रही है कि कोई आये और उनके जीवन को सफल बनाये। कुछ स्त्रियाँ यह समझती हैं कि वो घर से बाहर आ जा नहीं सकती, इसलिए वह कुछ नहीं कर सकती और उनका जीवन केवल ही व्यर्थ है, और वह अपनी असफलता का ठीकरा अपने परिवार की संकुचित सोच पर फोड़ती हैं! उन्हें ऐसा लगता है की उन्होंने इस परिवार में आकर (जन्म लेकर या विवाह करके) उस परिवार पर अहसान किया है।

क्योकि अगर वो किसी और परिवार में होती, तो कौन जानता है की आज वो क्या होती? पर, मै जो कि इस लेख की लेखिका हूँ इस बात को अच्छी तरह से स्वीकार करती हूँ की परिस्थियाँ चांहे जो भी हो, यदि स्त्री एक बार अपना मन बना लेती है तो ये सारी कायनात भी उसे रोक नहीं सकती बल्कि उसकी इच्छा को पूरी करने में स्वय उसकी सहायता करने लगती है | यह केवल हमारे मन की शंकाए है जो हमारी आकान्छाओं को हम तक ही सीमित रखती है, और जिसका दोष हम अपने परिवार और अपने पति अथवा अपने भाइयो पर डालते हैं कि उनकी बंदिश
की बजह से हम अपने जीवन में कुछ नहीं कर पाए |

यह सब बातें तो पुराने ज़माने में भी स्वीकार नहीं की जाती थी क्योकि पुराने ज़माने में गार्गी, अपाला और रानी लक्ष्मीबाई इसका ज्वलंत उदहारण है | बड़ी-बड़ी लेखिका जैसे महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है | ये स्त्रियाँ भी किसी परिवार की थी लेकिन इन्होने अपने परिवार की मर्यादाओं का पालन करते हुए भी अपने जीवन को सफल बनाया और आज पूरा भारत इनको सिर्फ इनके ही नाम से जानता है | यहाँ पर मेरे कहने का मतलब यह है कि अगर आपको यह लगता है कि आप कोई काम कर सकते हो, तो आप को उस काम को करने की कोशिश करनी चाहिए, अपने परिवार वालो से पूछना चाहिए, क्योंकि हम स्त्रियाँ किसी भी काम को करने से पहले सोचती बहुत है, चाहे वह काम हमारे परिवार की मान-मर्यादा में वृधि ही क्यों ना करे? हमारी इसी सोच के कारण हमारी प्रतिभा, हमारी कुशलता, हमारे दिमाग में उत्पन्न होती है और दिमाग में ही दफ़न हो जाती, जो कुछ शेष रहता है वो है पछताना या विलाप कि “काश मैंने अपने परिवारवालों से पूछा होता?” पर “अब पछताए का होता है जब चिड़ियाँ चुग गयी खेत” गौरतलब है, कि घर से बाहर जाकर ही सफलता हासिल नहीं की जा सकती है बल्कि घर पर रह कर भी की जा सकती है। आज कल तो नयी से नयी टेक्नोलोजी आ गयी, जैसे हम घर रह कर यू टियूब चैनल शुरू कर सकते हैं

जिसके माध्यम से हम नयी से नयी चीजे सीख सकते हैं और सीखा भी सकते हैं। किताबे या लेख लिख कर प्रकाशित कर सकते हैं, घर पर तरह-तरह की कक्षाए लगा सकते है जैसे सिलाई, कडाई, पड़ने और नृत्य पर इन सब काम को करने से पहले हमे अपनी सोच को पूरी तरह से बदलना होगा और अपने दिमाग को इधर-उधर से हटा कर अपनी उद्देश्य पूर्ति के लिए लगाना होगा। इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी, सबसे पहले अपने घर के माहौल को सकारात्मक करना होगा क्योंकि जहाँ पर सकारात्मक विचार होते हैं वहां पर कुछ अच्छा पनपता है! जब एक बार सकरात्मक्त्ता आपका दामन पकड़ लेगी तो समृधि स्वयं ही आपके समक्ष उपस्थित हो जाएगी।

ये याद रहे कि मृत्यू जीवन का सबसे बड़ा दुख नहीं है, सबसे बड़ा दुःख है जीवित होने का अहसास न होना! कुछ खास करने से अक्सर जीवित होने का अहसास अवश्य होगा!

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