वसूली के पोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश सरकार को राहत नहीं मिली है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लगाए गए वसूली के पोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश सरकार को राहत नहीं मिली है। इन पोस्टरों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया था, जिसे योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है और इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है।

फिलहाल, जस्टिस उमेश उदय ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अवकाशकालीन बेंच इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने का फैसला सुनाया। जस्टिस ललित ने कहा कि इस मामले को चीफ जस्टिस देखेंगे। सभी व्यक्ति जिनके नाम होर्डिंग्स में नाम हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के सामने मामले में पक्ष रखने की अनुमति दी गई है।

57 पर आरोप के सबूत: तुषार मेहता

इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 95 लोग शुरुआती तौर पर पहचाने गए। उनकी तस्वीरें होर्डिंग पर लगाई गईं। इनमें से 57 पर आरोप के सबूत भी हैं, लेकिन आरोपियों ने अब निजता के अधिकार का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में होर्डिंग को चुनौती दी, लेकिन पुत्तास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1994 के फैसले में भी निजता के अधिकार के कई पहलू बताए हैं।

आम आदमी के पोस्टर लगाने के पीछे क्या तर्क है?: SC

इस पर जस्टिस ललित ने कहा कि अगर दंगा-फसाद या लोक संपत्ति नष्ट करने में किसी खास संगठन के लोग सामने दिखते हैं तो कार्रवाई अलग मुद्दा है, लेकिन किसी आम आदमी की तस्वीर लगाने के पीछे क्या तर्क है? सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने पहले चेतावनी और सूचना देने के बाद ये होर्डिंग लगाए। प्रेस मीडिया में भी बताया।

सरकार पर कानून के तहत चलने की पाबंदी: SC

इस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि जनता और सरकार में यही फर्क है। जनता कई बार कानून तोड़ते हुए भी कुछ कर बैठती है, लेकिन सरकार पर कानून के मुताबिक ही चलने और काम करने की पाबंदी है। वहीं, जस्टिस ललित ने कहा कि फिलहाल तो कोई कानून आपको सपोर्ट नहीं कर रहा। अगर कोई कानून है तो बताइए।

ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट का दिया गया उदाहरण

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने भी व्यवस्था दी है कि अवर कोई मुद्दा या कार्रवाई जनता से सीधा जुड़े या पब्लिक रिकॉर्ड में आ जाए तो निजता का कोई मतलब नहीं रहता। होर्डिंग हटा लेना बड़ी बात नहीं है, लेकिन बिषय बड़ा है। कोई भी व्यक्ति निजी जीवन में कुछ भी कर सकता है लेकिन सार्वजनिक रूप से इसकी मंजूरी नहीं दी जा सकती है।

नोटिस का जवाब न मिलने पर हुई कार्रवाई: SG

तुषार मेहता ने कहा कि हमने आरोपियों को नोटिस जारी करने के बाद कोई जवाब ना मिलने पर अंतिम फैसला किया। 57 लोग आरोपी हैं, जिससे वसूली की जानी चाहिए। हमने भुगतान के लिए 30 दिनों की मोहलत दी थी।

यूपी सरकार ने नियमों की अनदेखी की: सिंघवी

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के ब्रिटिश रॉयल सुप्रीम कोर्ट के ऑपरेशन एक्सपोज को कानूनन सही ठहराने के आदेश का हवाला देने के बाद अब अभिषेक मनु सिंघवी ने पूर्व आईपीएस अधिकारी दारापुरी की ओर से बहस शुरू की। सिंघवी ने कहा कि यूपी सरकार ने कुछ बुनियादी नियम की अनदेखी की। अगर हम यूं ही बिना सोचे समझे एक्सपोज करते रहे तो नाबालिग बलात्कारी के मामले में भी यही होगा? इसमें बुनियादी दिक्कत है।

सरकार तो बैंक डिफॉल्टर का नाम नहीं बता पाई: सिंघवी

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कहने के तीन साल बीत जाने के बावजूद सरकार बैंक डिफॉल्टर के नाम तो अब तक सार्वजनिक नहीं कर पाई। ये पिक एंड चूज है। यूपी सरकार ने गवर्नमेंट ऑर्डर जारी कर अधिसूचित कर दिया। क्या यहीं अथॉरिटी है? सरकार ने लोकसम्पत्ति नष्ट करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले की अनदेखी की। सरकार ने तो जनता के बीच ही भीड़ में मौजूद लोगों को दोषी बना डाला।

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