महामारी के बीच अधिकारियों के दबाव से परेशान प्राइवेट बैंक कर्मचारी

महामारी के बीच अधिकारियों के दबाव से परेशान प्राइवेट बैंक कर्मचारी

Shivangi Purohit, freelance writer
शिवांगी पुरोहित, स्वतंत्र लेखिका

जहां देश कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहा है वहीं प्राइवेट बैंक के कर्मचारी भी बहुत परेशानियों का सामना कर रहे हैं। पहले सरकार ने बैंकों को सिर्फ लेनदेन करने और पासबुक में एंट्री करने जैसे अनिवार्य कार्य ही करने और घर से काम करवाने को कहा लेकिन अब सरकार ने 33% स्टाफ के साथ कार्य करने को कह दिया है। वही प्राइवेट बैंक के अधिकारी उनके कर्मचारियों को टारगेट पूरा करने का दबाव बना रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि देश एक बहुत गंभीर परेशानी से जूझ रहा है जिसका निवारण कब होगा यह किसी को भी नहीं पता। लेकिन यह प्राइवेट बैंक वाले अधिकारी अपना बिजनेस बढ़ाने की कोशिश में है। इन्हें कोई फिक्र नहीं है इनके कर्मचारियों की। अगर सरकारी बैंक को एक तरफ करें तो यहां सिर्फ लेनदेन जैसे कार्य हो रहे हैं। और सरकारी बैंक के कर्मचारियों की नौकरी तो फिक्स है।

लेकिन प्राइवेट बैंक के कर्मचारी एक अनिश्चित नौकरी कर रहे हैं। अगर वे टारगेट पूरा नहीं करेंगे तो उन्हें उनकी नौकरी जाने का भी डर है और साथ ही साथ अधिकारी उनकी सैलरी काट लेने की भी धमकियां दे रहे है। इस दबाव के चलते वे बहुत ही मानसिक प्रताड़ना और तनाव का शिकार हो रहे हैं। सरकार ने 33% स्टाफ के साथ कार्य करने को कहा है लेकिन इसमें भी अधिकारियों की मनमानी चल रही है। 33% के नाम पर हर तीन 3 में 99% कर्मचारियों को घर से बैंक जाकर काम करना पड़ रहा है। कुछ प्राइवेट बैंक ना तो मास्क की सुविधा दे रहे हैं और ना ही कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए कोई और प्रबंध कर रहे हैं।

उन कर्मचारियों की व्यथा कोई नहीं सुनना चाह रहा। कोई उनसे पूछे तो सही कि उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। घर से निकलकर बैंक तक पहुंचने के बीच कई बार पास दिखाकर पुलिस से आगे बढ़ने की अनुमति लेनी पड़ती है, तब जाकर वे बैंक पहुंचते हैं और वहां कई ऐसे कार्य उन्हें करने होते हैं जिनकी फिलहाल जरूरत नहीं है। जैसे कि- बैंक में खाता खुलवाने का टारगेट, पॉलिसिया बेचने का टारगेट और कस्टमर से दिनभर गालियां खाना भी उनके कार्य का हिस्सा है।

अधिकारियों द्वारा मिले टारगेट को पूरा करने के लिए वे जब कस्टमर को फोन कर खाता खोलने संबंधी और पॉलिसी संबंधी जानकारियों की बात करते हैं तो उन्हें ना जाने कितनी खरी-खोटी सुननी पड़ती है। और तो और अधिकारियों के आदेश पर लोन की किश्तें कस्टमर से वापस लेने की कोशिश करते है लेकिन इस समय लोग लोन की किस्तें नहीं चुका पा रहे है। इस वजह से कर्मचारियों का तनाव बढ़ता जा रहा है। देश की आर्थिक मंदी के चलते अधिकारियों ने कर्मचारियों पर बहुत भार डाल दिया है।

आखिर वे लोग कब तक सहेंगे? उनकी तो पीठ भी जल रही है पेट भी जल रहा है। प्राइवेट बैंक वाले आखिर कितनी सैलरी पाते होंगे 10 से 15 हजार। और इन्हीं 10 से 15 हजार के लिए उन्हें सुबह से शाम ना जाने कितने ऐसे कार्य करने पड़ते हैं जिनसे वे तनाव ग्रसित होते जा रहे हैं। एक तरफ कोरोना से भी बचना है और दूसरी तरफ अधिकारियों के आदेशों का पालन भी करना है। आखिर प्राइवेट बैंक के कर्मचारी जाएं तो जाएं कहां ? प्राइवेट बैंक के अधिकारी सरकार के आदेशों का पालन क्यों नहीं कर रहे है ? क्या सरकार के संज्ञान में यह बात है कि प्राइवेट बैंक अपनी मनमानी कर रहे है। कर्मचारियों को इस तरह प्रताड़ित कर रहे हैं। पर अगर यह समस्या सरकार के सामने आती है तो क्या सरकार इस पर ध्यान देगी ? एक प्रश्न यह भी उठता है।

 

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