वर्ष 1990 में राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में मंडल कमीशन की रिपोर्ट का लागू होना देश के सामाजिक न्याय आंदोलन में एक मील का पत्थर है। इस रिपोर्ट को लागू कराने में श्री शरद यादव की निर्णायक भूमिका को कौन भूल सकता है। करीब एक दशक के संघर्ष के बाद लागू हुई इस रिपोर्ट ने न सिर्फ पिछडों और वंचित तबकों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का रास्ता खोला बल्कि भारतीय राजनीति का व्याकरण भी बदल दिया।
1990 से लेकर अब तक मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, कल्याण सिंह, शिबू सोरेन, बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, मधु कोडा, अजित जोगी, जीतनराम मांझी, उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान, बीएस येदियुरप्पा, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल आदि जितने भी मुख्यमंत्री विभिन्न राज्यों में हुए हैं, वे सब मंडल आंदोलन से उपजी राजनीतिक चेतना की ही देन है। प्रकारांतर से इसका श्रेय श्री शरद यादव को ही जाता है।
1989 में मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के और 1990 में श्री लालू प्रसाद यादव के बिहार के मुख्यमंत्री बन सके थे तो इसके पीछे श्री शरद यादव का ही दबाव और रणनीति थी। इससे भी पहले श्री कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू जी विधानसभा में नेता विपक्ष भी शरद जी की मदद से ही बन सके थे। मंडल आंदोलन ने सिर्फ समाजवादी धारा याकि जनता दल परिवार की पार्टियों को ही नहीं , बल्कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को भी अपने यहां संगठन और सत्ता में पिछड़ी जातियों को हिस्सेदारी देने को मजबूर किया। इसीलिए शरद यादव को मंडल मसीहा कहा जाता है।
आज संसद में दलितों, आदिवासियों, पिछडों, अल्पसंख्यकों और गरीब तबकों का कोई मुखर प्रवक्ता नहीं है। राष्ट्रीय जनता दल के सामने यह अवसर था कि वह शरद जी को राज्यसभा में भेजकर इस अभाव की पूर्ति कर सकता था। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने अपने जनाधार वर्ग की उपेक्षा करते हुए अपने परिवार के आर्थिक हितों को तरजीह दी।
राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व उनके परिवारजनों के इर्द – गिद मंडराने वाले चापलूस और निहित स्वार्थी तत्व तथा उनके नासमझ सलाहकार अक्सर जनाधार की बहुत बात करते हैं। लेकिन ऐसे लोगों को याद रखना चाहिए कि भारत की राजनीति में श्री अटल बिहारी वाजपेयी,नरसिम्हा राव और मीरा कुमार के अलावे सिर्फ श्री शरद यादव ही चौथे ऐसे नेता हैं जो तीन प्रदेशों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार से लोकसभा के लिए एक से अधिक बार चुने गए हैं।
राज्यसभा के लिए भी वे उत्तर प्रदेश और बिहार से चुने जाते रहे हैं। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि लोकसभा या राज्यसभा के लिए चुने जाने वाला हर व्यक्ति अपना कार्यकाल पूरा करना चाहता है और बड़े से बड़े मुद्दे पर इस्तीफा देने से बचने की कोशिश करता है। लेकिन श्री शरद यादव ने एक नहीं तीन तीन बार सैद्धांतिक आधार पर स्वेच्छा से संसद से इस्तीफा देकर नैतिकता के नए मानदंड कायम किए हैं।
पहली बार तो श्री शरद यादव ने आपातकाल में जेल में रहते हुए लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर उस समय लोकसभा से इस्तीफा दिया था जब श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री जनेश्वर मिश्र जैसे दिग्गज भी इस्तीफा देने से मुकर गए थे।