नई दिल्ली, सत्यकेतन समाचार: राजधानी के आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने वाले व्हिसलब्लोअर भारतीय वन सेवा के (आईएफएस) अधिकारी संजीव चतुर्वेदी की लोकपाल में नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। उत्तराखंड सरकार ने संजीव चतुर्वेदी को लोकपाल में सेवा देने के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) जारी कर दिया है। संजीव चतुर्वेदी उत्तराखंड कैडर के अधिकारी हैं।
हाल ही में संजीव चतुर्वेदी को चीफ फॉरेस्ट कंजरवेटर पद पर पदोन्नति मिली थी। पिछले दिनों संजीव चतुर्वेदी ने देश के लोकपाल को चिट्ठी लिखकर संस्था में काम करने की गुहार लगाई थी। इस पर उत्तराखंड सरकार ने एनओसी जारी कर दिया है। साथ ही राज्य सरकार ने फैसले की कॉपी को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया गया है।
दरअसल, एम्स में मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) रहते संजीव चतुर्वेदी ने भ्रष्टाचार के कई मामलों का खुलासा किया था। 2014 में उन्हें सीवीओ पद से स्वास्थ्य मंत्रालय ने हटा दिया था। तब से वह उत्तराखंड के हल्द्वानी में पोस्टेड हैं। इस बीच 2015-16 की उनकी एसीआर को शून्य कर दिया गया। 11 जनवरी 2017 को सूचना मिलने पर उन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने नैनीताल कैट जाने की सलाह दी। बाद में नैनीताल कैट ने स्वास्थ्य मंत्रालय और एम्स को नोटिस जारी किया। इस पर सरकार ने दिसंबर 2017 में दिल्ली कैट में केस की स्थानांतरण अपील की। नैनीताल और दिल्ली कैट में समानांतर मामला चलता रहा। इस बीच 27 जुलाई 2018 को दिल्ली कैट के चेयरमैन ने नैनीताल कैट की खंडपीठ की कार्यवाही पर छह महीने के रोक लगा दी। बाद में चतुर्वेदी ने लोकपाल में नियुक्ति के लिए पत्र लिखा था।