वैश्विक युद्ध की और बढ़ता रूस – यूक्रेन विवाद।

रूस और यूक्रेन के ताजा टकराव नए वैश्विक ताकतों के बीच एक बार पुनः तनाव पैदा कर दिया है इसे न्यू कोल्ड वार के रूप में देखा जा रहा है रूस और यूक्रेन के ताजा विवाद के बीज भूतकाल के गर्भ में समाहित है। वर्ष 2014 में यूक्रेन की क्रांति के बाद यूक्रेन देश के राष्ट्रपति विक्टर यांनुचकोविक को पद छोड़ना पड़ा तब रूस ने यूक्रेन में हस्तक्षेप करके क्रीमिया में रूसी सेना भेजी और उसे कब्जे में ले लिया इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि क्रीमिया में रूसी मूल के लोग बहुत है और विरोध प्रदर्शन के बीच रूस को उनके हितों की रक्षा करने का अधिकार है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी यूरोपीय देश ने अन्य देश के क्षेत्र पर अपना अधिपत्य स्थापित किया क्रीमिया के आक्रमण और उसके बाद विलय ने रूस को इस क्षेत्र में समुद्रतटीय लाभ दिए । क्रीमिया के रूस में विलय के बाद रूस और यूक्रेन के बीच तनाव अब तक बना हुआ है इसी बीच अमेरिका से 200 मिलियन डॉलर की सैन्य साजो सामान की पहली रक्षा खेप यूक्रेन के कीव में पहुंच गई है जो युद्ध की निकटता को बताती है। इस समय यह अमेरिकी सैन्य सहायता यूक्रेन को रूसी आक्रमण के खिलाफ अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बचाने के लिए दी गई है। इसके अलावा बाल्टिक राष्ट्र ( इस्टोनिया, लताविया, लिथुआनिया) भी यूक्रेन की सहायता के लिए आगे आए हैं। वहीं दूसरी और रूस के लगभग 1 लाख सैनिक इस समय यूक्रेन की सीमा पर जमा है रूसी नौसेना के 6 युद्धपोत बाल्टिक सागर के रास्ते भूमध्य सागर की ओर बढ़ रहे हैं रूस जब चाहे तब इन युद्ध पोतों को भूमध्य सागर से काला सागर में भेज सकता है।

यूक्रेन – रूस विवाद में रूस क्या चाहता है

यूक्रेन को लेकर रूस ने पश्चिमी देशों के सामने कई मांगे रखी हैं रूस का कहना है कि वह नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो का सदस्य बने तथा नाटो गठबंधन को पूर्वी यूरोप में अपनी सभी सैन्य गतिविधियां छोड़ देनी चाहिए मोटे तौर पर रूस चाहता है कि नाटो की सेनाएं 1997 के पहले की तरह सीमाओं पर लौट जाएं और नाटो गठबंधन पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियां बंद कर दे इसका अर्थ है कि नाटो को पोलैंड, रोमानिया और बाल्टिक देशों से अपनी सेनाएं वापस बुलानी होंगी। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है की रूस – यूक्रेन का युद्ध या सैन्य कार्यवाही दुनिया पर तीसरा विश्व युद्ध थोप सकती है यदि भविष्य में यूक्रेन पर युद्ध या सैनिक कार्यवाही होती है तो इसके तात्कालिक तौर पर बड़े भयंकर परिणाम होंगे जनधन की हानि, विनाश , पश्चिमी देशों की ओर शरणार्थियों की समस्या , ऐसी स्थिति में पश्चिमी राष्ट्र यूक्रेन को प्रशिक्षण और सैन्य साजो सामान देंगे जिससे यह युद्ध अधिक समय तक जारी रह सकता है यदि इस युद्ध में परमाणु संपन्न राष्ट्र भी आ जाते हैं तो परिणाम और घातक होंगे रूस और अमेरिका के संबंधों में खटास अपने चरम पर होगी इसका फायदा साम्यवादी चीन को होगा और रूस और चीन के संबंध अच्छे हो जाएंगे।

यूक्रेन – रूस युद्ध में भारत की स्थिति

भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ है और उसने इस मुद्दे पर एक तटस्थ स्थिति बनाए रखी है देखा जाए तो रूसी आक्रमण या अमरीका और रूस समझौते को लेकर परिणाम जो कुछ भी आएं इसके महत्वपूर्ण प्रभाव भारत पर होंगे भारत पर पश्चिमी गठबंधन और रूस के बीच चयन करने का दबाव होगा ऐसे में यह भी संभव है कि अत्याधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम S-400 खरीद के कारण भारत को काटसा प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है भारत पर रूस के साथ रक्षा संबंधों में कटौती करने का दबाव भी बनाया जा सकता है दूसरी ओर यदि रूस और अमेरिका के बीच कोई समझौता होता है तो इसका फायदा भी भारत को ही होगा इससे रूस से संबंध और ज्यादा मजबूत करने का भारत को अवसर प्रदान होगा।

सुनील कुमार कश्यप