पृथ्वी पर जीवन ही प्रकृति से है। मानव और जीव जंतुओं की सांसें भी प्रकृति की वजह से ही चलती है। प्रकृति है तो जल है, भोजन है, वस्त्र है, और दवाएँ भी प्रकृति में ही है। हर समस्या का समाधान प्रकृति में है। एक वृक्ष 1 साल में करीबन 21 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड अपने अंदर सोखता है और 1 दिन में इतनी ऑक्सीजन देता है जिससे 4 आदमी जिंदा रह सके।
प्राचीन काल से शुरू करें तो प्रकृति ने ही मानव को जीना सिखाया है। वृक्षों की छाल और पत्ते पहनकर, कंदमूल खाकर गुफाओं में रहकर ही मनुष्य जीता था। वैज्ञानिकों की एक रिसर्च टीम कहती है कि अगर गुफा में रहने वाले मानव की खुराक का हिसाब मिल जाए, तो 21वीं सदी के इंसान की कई तकलीफें दूर हो जाएंगी। पौष्टिकता के आधार पर आहार और डाइट की सही पहचान हो सकेगी। धीरे धीरे यह बात साफ होने लगी है कि खाने पीने की इन बदली आदतों ने कई नई और घातक बीमारियों को भी जन्म दिया है। यह भी एक वजह है कि आज का इंसान अपने पूर्वजों की तुलना में शारीरिक रुप से कमजोर हो चुका है
हमारे आसपास लगा हर पौधा, हर पेड़ अपने आप में कुछ गुण लिए होता है। प्रकृति में इतनी शक्ति होती है कि रोज की भागदौड़ भरी जिंदगी से निकलकर इंसान किसी बगीचे में जाकर बैठ जाए तो सुकून पाता है। तनाव होने पर डॉक्टर भी प्राकृतिक स्थल पर घूमने या बागवानी करने की सलाह देते हैं। इसे नेचुरोपैथी कहा जाता है। नेचुरोपैथी यानी प्राकृतिक उपचार। इस पद्धति में प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल कर इलाज किया जाता है। कई बार हमारे घरों में कोई शारीरिक समस्या होने पर हम घरेलू उपचार करते हैं जैसे- पेट दर्द, कब्ज होने पर जीरा, मेथी, अजवाइन, सौंफ इत्यादि काम में आती है।
पहले हर बीमारी का उपचार प्राकृतिक तरीकों से होता था। हमारे बड़े बुजुर्गों से पूछे तो वे बताते हैं कि जब उनके समय में आधुनिक चिकित्सा का विस्तार नहीं था तो प्राकृतिक चीजों से ही हर बीमारी का इलाज किया जाता था। हड़जोड़ की बेल बहुत दुर्लभ है। इस बेल को उबालकर पीने से टूटी हुई हड्डियां जुड़ जाया करती थी। टूटे हुए हाथ या पैर पर लकड़ी की सींको को जोड़कर बनाई गयी खपच्चीयाँ कपास के साथ प्लास्टर की तरह लगा दी जाती थी।
कई स्तरों के साथ आगे बढ़ा है प्राकृतिक उपचार। प्राकृतिक उपचारों को अगले चरण पर पहुँचाने मे कई लोगों का हाथ है। महर्षि चरक द्वारा रचित चरक संहिता में प्रकृति से इलाज का विस्तृत वर्णन मिलता है। महर्षि सुश्रुत शल्य चिकित्सा के जनक माने जाते है। वे मानव शरिर कि संरचना को समझने के लिये मृत व्यक्ति के शरीर को पानी मे रखते थे ताकि शरीर फूल जाए और संरचनाएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगें।
साधारण व्यक्ति वनस्पतियों की गूढता को नहीं समझ पाता। उसे पौधों की परख नहीं होती कि वे कितने लाभदायक है। हालात ऐसे हैं कि पेड़ काटकर उसका कागज बनाया जाता है और उसी कागज पर लिखा जाता है कि पेड़ बचाओ। मानव को प्रकृति की महत्ता समझनी चाहिए। जब जब प्रकृति मानव के अत्याचार से त्रस्त होती है तो वह अपना भयंकर रूप भूकंप ज्वालामुखी जैसे प्रकोपो द्वारा दिखाती है। प्राकृतिक प्रदूषण जितना अधिक बढ़ता है उतनी ही बीमारियाँ वातावरण में फैलती हैं। प्रकृति कुछ ऐसी है कि उसके साथ जैसा व्यवहार किया जायेगा वैसी ही प्रतिक्रिया वह मानव को देती है। प्रकृति के पास हर मर्ज की दवा है। दुनिया में जितनी भी प्राकृतिक महामारी फैली है। उसका इलाज प्रकृति ने हीं संसार को दिया है।
हालांकि विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। मानव की जिंदगी को सरल बना दिया लेकिन हर चीज के दो पहलू होते हैं। विज्ञान ने जितना लाभ दिया उतनी ही समस्याएं भी दी है। लोग अपना खाली वक्त मोबाइल टीवी कंप्यूटर को देते हैं। इसके बजाय कभी खुले वातावरण में टहलने जाए तो कई प्रतिशत तनाव से मुक्ति मिलेगी। हालात ऐसे है कि मानव को अब अपना प्राकृतिक चेहरा पसंद नही आता तो वह विज्ञान का सहारा लेकार चेहरे पर प्लास्टिक लगवाता है। प्राचीन समय में लोग प्रकृति को देवी देवता मानकर पूजते थे। क्योंकि वे प्रकृति की महत्ता को जानते थे। सूर्य, भूमि, जल, वायु, आकाश ये पांचों तत्व मानव जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। इन के बिना मानव जीवन असंभव है।
पृथ्वी पर जीव जंतुओं की लगभग 87 लाख प्रजातियां है। हर जीव का अपना अलग महत्व है। प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में जीव जंतु खासी भूमिका अदा करते हैं। जीव जंतुओं और मानव जीवन में एक घनिष्ठ संबंध है। जीव जंतु मानव को कई सुविधाएं प्रदान करते हैं। रोजाना मनुष्य गाय, भैंस, बकरी का दूध प्रयोग में लेता है जिसमें भरपूर कैल्शियम होता है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा युक्त मांस खाता है और मशीनीकरण के बहुत पहले से ही बैलों से हल जोते जाते थे। मानव के पास जीव जंतुओं का होना एक तरह का स्वरोजगार है। गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, मधुमक्खी भेड़, घोड़े ऐसे जीव है जिन्हें पालकर मानव अपनी जीविका चला सकता है।
इस तरह प्रकृति ने हमें जीवन जीने के लिए सब कुछ दिया है। हमारी हर समस्या का समाधान प्रकृति के पास है। प्रकृति है, तो प्रथ्वी पर जीवन है, प्रकृति को खतरा यानि जीवन को खतरा।
– लेखिका, शिवांगी पुरोहित