भोपाल: मध्य प्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट का दर्जा मिल गया है। यहां 526 बाघ पाए गए हैं। चार साल में 218 बाघ बढ़ने से बाघों का मूवमेंट जंगल से बाहर रहवासी क्षेत्रों में दिखना शुरू हो गया है। इसकी बड़ी वजह संरक्षित और गैर संरक्षित वन क्षेत्रों में शाकाहारी वन्यप्राणियों की कमी बताई जा रही है। देखने में आया है कि जिन क्षेत्रों में हिरन, सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय सहित अन्य शाकाहारी जानवरों की कमी है।
उस क्षेत्र में मूव कर रहे बाघ अक्सर जंगल से बाहर आ जाते हैं और मवेशियों का शिकार करते हैं, जिससे मानव-बाघ द्वंद्व की संभावना बनी रहती है। प्रदेश में बाघों की शिफ्टिंग का दौर एक बार फिर शुरू होने की संभावना है। बाघों के लगातार जंगलों से बाहर आने और शहरी क्षेत्र के आसपास मूवमेंट को देखकर विभाग इस पर विचार कर रहा है। हालांकि ऐसा प्रदेश के संरक्षित और गैर संरक्षित वन क्षेत्रों में शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या सामने आने के बाद ही किया जा सकेगा, इसलिए विभाग बाघ आकलन 2018 के शेष आंकड़े आने का इंतजार कर रहा है।
ये आंकड़े आने के बाद उन क्षेत्रों से बाघों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट करने की रणनीति बनाई जाएगी, जहां शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या काफी कम है। एक विचार यह भी है कि बाघों की बजाय शाकाहारी वन्यप्राणियों को ही शिफ्ट किया जाए। वैसे तो प्रदेश के सभी संरक्षित क्षेत्रों में दो साल में एक बार मांसाहारी और शाकाहारी वन्यप्राणियों की गिनती हो जाती है, लेकिन गैर संरक्षित क्षेत्रों में यह बाघ आकलन के दौरान ही मुमकिन है, इसलिए बाघ या शाकाहारी वन्यप्राणी की शिफ्टिंग के लिए इसी रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। विभाग के अफसरों के मुताबिक आकलन की रिपोर्ट अगले एक हफ्ते में आ सकती है।
इसके बाद रिपोर्ट का अध्ययन किया जाएगा और फिर बाघों की शिफ्टिंग का प्लान बनेगा। बताया जा रहा है कि जिन क्षेत्रों में हिरन, सांभर, चीतल, चिंकारा, नीलगाय सहित अन्य शाकाहारी जानवरों की कमी है। उस क्षेत्र में मूव कर रहे बाघ अक्सर जंगल से बाहर आ जाते हैं और मवेशियों का शिकार करते हैं, जिससे मानव-बाघ द्वंद्व की संभावना बनी रहती है।