Epidemic act: 1897 में अंग्रेजों ने मुंबई में फैले ब्यूबानिक प्लेग पर काबू पाने के लिए इस एक्ट को बनाया था। इसके बाद देश में 1987 में एक बार और कुछ जगहों पर एपेडमिक डिजीज एक्ट के नाम से चर्चा में आया है। प्रदेश सरकार अब इसमें और संशोधन करने जा रही है। जिसमें ज्यादा सजा और कड़े जुर्माने का प्रावधान होगा।
- क्या है कानून
महामारी रोग अधिनियम, 1897 के अन्तर्गत मिली शक्तियों से सरकारें नियमावली बना सकती हैं, यात्रा पर रोक लगा सकती हैं, लोगों को जांच, उपचार और प्रवास के लिए बाध्य कर सकती है। उल्लंघन पर जुर्माना या आईपीसी 1860 की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध मानकर कार्रवाई होगी। इस कार्रवाई के खिलाफ वाद दाखिल नहीं हो सकता।
- इससे पहले यहां लागू हुआ
2009 में पुणे में स्वाइन फ्लू को नियंत्रित करने के लिए इस कानून को लागू किया गया था।
2015 में चंडीगढ़ में डेंगू और मलेरिया पर काबू पाने के लिए इस कानून का उपयोग हुआ था।
2018 में गुजरात के एक गांव में फैले हैजा की रोकथाम के लिए इस कानून को लागू किया गया था।
2020 में कोरोना से फैली महामारी के बीच लॉकडाउन के उल्लंघन में यह कानून लागू है।
- इन में लागू होती है आईपीसी की धारा 270
किसी जानलेवा बीमारी, महामारी को फैलाने के लिए किया गया घातक या फिर नुकसानदायक काम, जिससे किसी अन्य व्यक्ति की जान को खतरा हो सकता है। आरोपी ने अगर जानबूझकर महामारी को फैलाने के लिए कदम उठाया हो। इसमें छह महीने की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
- इन अपराधों में लगती है धारा 269
किसी बीमारी को फैलाने के लिए किया गया गैर जिम्मेदाराना काम। इससे किसी अन्य व्यक्ति की जान को खतरा हो सकता है। इस धारा के तहत अपराधी को छह महीने की जेल या जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है।
- क्या हैं आईपीसी की धारा 269 और 270
आईपीसी की धारा 269 और 270 में स्वास्थ्य, सुविधा, सुरक्षा, शालीनता और नैतिकता को प्रभावित करने वाले अपराधों का जिक्र किया गया है। महामारी एक्ट लागू होने के बाद इन्हीं धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाता है।