Justice Indu, सत्यकेतन समाचार : अदालतों के ऊपर बढ़ते मुकदमों के बोझ को कम करने के लिए एक सप्ताह के अंदर दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट के किसी जज ने मध्यस्थता प्रक्रिया में सुधार का मुद्दा उठाया है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा (Justice Indu malhotra) ने शनिवार को कहा कि भारत को तदर्थ के बजाय संस्थागत मध्यस्थता तंत्र पर ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने मध्यस्थता के लिए पेशेवर व प्रशिक्षित मध्यस्थकारों की नियुक्ति की भी सिफारिश की।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा (Justice Indu malhotra) से पहले 8 फरवरी को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एसए बोबडे ने भी संस्थागत मध्यस्थता की वकालत की थी। उन्होंने कहा था कि अदालतों में मुकदमा आने से पहले अनिवार्य मध्यस्थता के जरिये उसे निपटाने का प्रयास किए जाने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा (Justice Indu malhotra) ने नानी पालकीवाला मध्यस्थता केंद्र (एनपीएसी) की तरफ से आयोजित 12वें वार्षिक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में मध्यस्थता प्रक्रिया को दुरुस्त करने की तत्काल आवश्यकता है, ताकि न्यायिक समीक्षा के ढांचे का विस्तार किए बिना आंतरिक अपील के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके। अपने संबोधन को 1996 के संबंधित अधिनियम के दौर पर केंद्रित करते हुए जस्टिस मल्होत्रा ने इसके तहत दिए गए निर्णयों, उनके दायरे, सभी विभिन्न पहलुओं की चर्चा की।
उन्होंने कहा कि भारत के लिए तदर्थ मध्यस्थता से संस्थागत मध्यस्थता की तरफ रुख करने का समय आ गया है। करीब 250 वकीलों, विभिन्न कंपनियों के सीईओ, विद्वानों और छात्रों के सामने उन्होने पेशेवर व प्रशिक्षित मध्यस्थकारों की नियुक्ति को अनिवार्य बताया। उन्होंने कहा, यदि मध्यस्थकार को विषय की वाकई जानकारी होगी तो उसके आदेश की न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता बेहद कम होगी।