National Flag: भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

National Flag: भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास

National Flag
National Flag

राष्ट्रीय ध्वज ( National Flag ) स्वतंत्रता के लिए, भारत की लम्बी लड़ाई व राष्ट्रीय खजाना का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्वतंत्र भारत के गणतंत्र का प्रतीक है। देश आजाद होने के कुछ दिन पूर्व 22 जुलाई 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान को लेकर एक सभा आयोजित की गई थी, जहाँ पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को सबके सामने प्रस्तुत किया गया। इसके बाद 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक राष्ट्रीय ध्वज को भारत के अधिराज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। 1950 में संविधान लागु होने पर इसे स्वतंत्र गणतंत्र का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया गया। राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंक्क्या द्वारा बनाया गया था।

तिरंगा के तीनों रंगों का विस्तार से विवरण

केसरिया – केसरिया रंग तिरंगे में सबसे उपर होता है, यह साहस, निस्वार्थता व शक्ति का प्रतीक है।

सफ़ेद – तिरंगा में सफ़ेद रंग सच्चाई, शांति व पवित्रता का प्रतीक है। यह रंग देश में सुख शांति की उपयोगिता को दर्शाता है।

हरा – हरा रंग विश्वास, शिष्टता, वृद्धि व हरी भरी भूमि की उर्वरता का प्रतीक है। यह सम्रधि व जीवन को दर्शाता है।

अशोक चक्र – इसे धर्म चक्र भी कहते है। नीले रंग का अशोक चक्र तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया था। जिसे तिरंगा में बीच में लगाया गया है, इसमें 24 धारियां होती है। अशोक चक्र जीवन के गतिशील होने को दर्शाता है, इसका न होना मतलब म्रत्यु है।

भारत के सभी राष्ट्रीय ध्वजों का इतिहास (All National Flag History)

1904-06 भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास आजादी के पहले से जुड़ा हुआ है। 1904-06 के आसपास पहली बार राष्ट्रीय ध्वज लोगो के सामने आया था। उस समय इसे स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बनाया था। कुछ समय बाद इस ध्वज को सिस्टर निवेदिता ध्वज कहा जाने लगा। इस ध्वज का रंग पीला व लाल था। जिसमें लाल रंग आजादी की लड़ाई व पीला रंग जीत का प्रतीक था। इस पर बंगाली भाषा में ‘वोंदे मतोरम’ जिसका अर्थ वंदेमातरम् है लिखा गया था। इस पर भगवान इंद्र का शस्त्र वज्र व सेफ कमल का चित्र भी बनाया गया था। वज्र ताकत व कमल पवित्रता का प्रतीक था।

1906 – सिस्टर निवेदिता की रचना के बाद 1906 में एक बार फिर नए ध्वज का निर्माण हुआ। इसमें तीन रंग समाहित थे, सबसे उपर नीला फिर पीला व सबसे नीचे लाल रंग था। इसमें सबसे उपर नीली पट्टी में 8 अलग अलग तरह के सितारे बने हुए थे। सबसे नीचे की लाल पट्टी में एक ओर सूर्य व दूसरी ओर आधा चन्द्रमा व एक तारा बना हुआ था। पिली पट्टी में देवनागरी लिपि से वंदेमातरम् लिखा गया था।

इसी साल इस ध्वज में थोडा बदलाव किया गया, इसमें तीन रंग ही थे, लेकिन उन रंगों को बदल दिया गया। इसमें केसरिया, पीला व हरा रंग था, जिसे कलकत्ता ध्वज कहा गया. इसमें सबसे उपर 8 आधे खिले हुए कमल बनाये गए थे, इसलिए इसे कमल ध्वज भी नाम दिया गया। इसे सचिन्द्र प्रसाद बोस व सुकुमार मित्रा ने बनाया था। इस ध्वज को 7 अगस्त 1906 में कलकत्ता के पारसी बागन चौराहे पर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी द्वारा फ़हराया गया था। उस समय बंगाल का विभाजन हुआ था, उसी के विरोध में ये प्रदर्शन किया गया था।

1907 – 1907 में इसमें मैडम भिकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर व् श्यामजी कृष्णा वर्मा द्वारा फिर बदलाव किये गए। इसे मैडम भिकाजी कामा ध्वज भी कहा गया। 22 अगस्त 1907 में मैडम भिकाजी कामा द्वारा इस ध्वज को जर्मनी में फ़हराया गया था। ऐसा पहली बार था, जब भारतीय ध्वज को देश के बाहर विदेशी जमीन पर फ़हराया गया था। इस समारोह के बाद इसे ‘बर्लिन कमिटी ध्वज’ भी कहा गया। इस ध्वज में सबसे उपर हरा बीच में केसरिया व् सबसे नीचे लाल रंग था।

1916 – 1916 में पिंगली वेंकय्या नाम की लेखिका ने एक ध्वज बनाया, जिसमें पुरे देश को साथ लेकर चलने की उनकी सोच साफ झलक रही थी। वे महात्मा गाँधी से भी मिली और उनकी राय ली। गांधीजी ने उनको उसमें चरखा भी जोड़ने की बात कही। पिंगली ने पहली बार ध्वज को खादी के कपड़े से बनाया था। इसमें 2 रंग लाल व् हरे रंग से बनाया गया व् बीच में चरखा भी बनाया गया। इस ध्वज को महात्मा गाँधी ने देख कर नकार दिया, उनका कहना था लाल रंग हिन्दू व् हरा रंग मुस्लिम जाति का प्रतीक है। इस ध्वज से देश एकजुट नहीं प्रतीत होता है।

1917 – 1917 में बाल गंगाधर तिलक ने नए ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इस ध्वज पर सबसे उपर यूरोपियन देश का झंडा भी जुड़ा हुआ था, बाकि जगह में 5 लाल व् 5 नीली लाइनें थी। इसमें 7 स्टार जिसे सप्तऋषि कहते है, हिन्दुओं की धार्मिकता को दर्शाने के लिए बनाये गए. इसमें अर्द्धचन्द्रमा व् एक तारा भी बनाया गया था।

1921 – महात्मा गाँधी चाहते थे कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में देश की एक जुटता साफ साफ झलके, इस वजह से एक ध्वज का निर्माण किया गया। इस ध्वज में भी 3 रंग थे, सबसे उपर सफ़ेद फिर हरा आखिरी में लाल। इस ध्वज में सफ़ेद रंग देश के अल्पसंख्यक, हरा रंग मुस्लिम जाति व् लाल रंग हिन्दू और सिख जाति को दर्शाता था। बीच में चरखा भी जोड़ा गया, जो सारी जाति की एकजुटता को दर्शाता था। इस ध्वज को कांग्रेस पार्टी ने नहीं अपनाया, लेकिन फिर भी ये आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीयता का प्रतीक बना हुआ था।

1931 – ध्वज में साम्प्रदायिक व्याख्या से कुछ लोग बहुत नाराज थे। इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए ध्वज में लाल रंग को गेरू कर दिया गया। ये रंग हिन्दू मुस्लिम दोनों जाति को प्रकट करता है। लेकिन इसके बाद सिख जाति के लोगो ने राष्ट्रीय ध्वज में अपनी जाति को प्रकट करने के लिए एक अलग मांग की। इसके फलस्वरूप पिंगली ने एक नया ध्वज बनाया, जिसमें सबसे उपर केसरिया फिर सफ़ेद अंत में हरा रंग था। इसमें बीच में सफ़ेद के उपर नीले रंग का चरखा था। 1931 में कांग्रेस पार्टी की मीटिंग में इसे पास कर दिया गया, जिसके बाद ये कांग्रेस का आधिकारिक ध्वज बन गया।

1947 – 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब देश के प्रथम राष्ट्रपति व कमिटी प्रमुख राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में बात करने के लिए एक सभा बुलाई। वहां सबने एक मत होकर कांग्रेस से उनका ध्वज लेने की बात मानी। 1931 में बनाये गए उस ध्वज में बदलाव के साथ उसे अपनाया गया। बीच में चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली। इस प्रकार अपने देश का राष्ट्रीय ध्वज तैयार हो गया।

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