Delhi: भारत में वित्तीय आपातकाल लागू होने की संभावनाएं बन गई हैं? सुप्रीम कोर्ट में सेंट्रल फार अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमैटिक चेंज (सीएएससी) ने 26 मार्च को एक याचिका दायर की है। जिसमें मांग की गई है कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशभर में वित्तीय आपातकाल घोषित किया जाना चाहिए। वर्तमान केंद्र सरकार अपने बहुत सारे निर्णय,सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से पिछले वर्षों में कराने के लिए जानी जाती है। इस याचिका के दायर होने के बाद यह माना जा रहा है,कि जल्द ही देश में आर्थिक आपातकाल घोषित किया जा सकता है। केंद्र सरकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल के प्रावधान लागू करने के अधिकार हैं। राज्यसभा में केंद्र सरकार का स्पष्ट बहुमत नहीं है। अनुच्छेद 360 के अंतर्गत दोनों सदनों में वित्तीय आपातकाल के प्रस्ताव की मंजूरी आवश्यक है। ऐसी स्थिति में यह माना जा रहा है कि सरकार की पहल पर उपरोक्त संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर वित्तीय आपातकाल लागू कराने का प्रयास शुरू कर दिया है।
अनुच्छेद 360 के अंतर्गत यदि आपातकाल लागू किया जाता है इसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कमी करने के अधिकार मिल जाते हैं। इसमें उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी शामिल होते हैं। केंद्र को वित्तीय मामले में इससे भारी राहत मिलती है।सभी राज्यों के वेतन भत्तों और पेंशन को रोका या कम किया जा सकता है। 2,019-20 के लिए यह राशि लगभग 9 लाख करोड रुपए है।केंद्र के असैन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्तों का खर्च लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए है। आपातकाल लागू करने पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में कटौती करने की छूट मिल जाएगी। अभी 11.5 लाख करोड़ रुपए सरकार को खर्च करना पड़ता है। यदि इसमें 20 फ़ीसदी की भी कमी की गई तो सरकार को 2.30 लाख करोड़ रुपए की बचत होगी।
अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपातकाल लागू करने पर सरकार को वित्तीय स्वामित्व के सभी मानक लागू करने के अधिकार केंद्र एवं राज्य में मिल जाते हैं। केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों पर वित्तीय स्वामित्व लागू कर सकता है। राज्यों के बजट भी केंद्र सरकार को पारित करने के अधिकार मिल जाते हैं। पिछले 73 सालों में किसी भी सरकार ने वित्तीय आपातकाल लागू नहीं किया है। अभी तक तीन आपातकाल भारत में लागू किए गए हैं।जिनमें 1962 के चीन युद्ध के समय,1971 में पाकिस्तान के युद्ध के समय तथा 1975 में आंतरिक गड़बड़ी का हवाला देकर राष्ट्रीय आपातकाल, संविधान के अनुच्छेद 352 के अंतर्गत लगाया गया था।आपातकाल लागू होने पर अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 जिसमें अपराधों में दी गई सजा और जीवन का अधिकार छोड़कर,सभी मौलिक अधिकार नागरिकों के निलंबित हो जाते हैं। यदि आपातकाल लागू हुआ तो नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म होंगे। केंद्र सरकार को राज्य सरकारों पर अपने वित्तीय निर्णयों को लागू कराने का अधिकार मिल जाएगा। कोई राज्य सरकार यदि इसका विरोध करेगी।ऐसी स्थिति में अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्यों की सरकार को बर्खास्त कर केंद्र सरकार वहां की सत्ता अपने हाथ में ले सकती है। राज्य सरकारों के बजट भी केंद्र सरकार पास कर सकती है।अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर का बजट संसद के दोनों सदनों से पास कराया है।
सुप्रीम कोर्ट वर्तमान स्थिति में सरकार के साथ सहयोग करते हुए फैसला करने के लिए जानी जा रही है। ऐसी स्थिति में सेंटर फार अकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमैटिक चेंज की यह याचिका, यह बता रही है कि जल्द ही देश में वित्तीय आपातकाल लागू किया जा सकता है। शेयर बाजार में भी इस बात की चर्चा होने लगी है, कि जल्द ही वित्तीय आपातकाल लागू होगा। बाजार को सरकार प्रोत्साहन पैकेज देगी। 73 साल के इतिहास में पहली बार देश वित्तीय आपातकाल की ओर बढ़ रहा है। कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर जो लाक डाउन घोषित किया गया है उसको कुछ दिन ही हुए हैं उसके बाद यह हालत है कि महाराष्ट्र राजस्थान तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने वेतन भत्तों में भारी कटौती कर दी है। जिस तरह से केंद्र एवं राज्य सरकारें आर्थिक संकट से जूझ रही हैं।उससे ऐसा लगता है कि बहुत जल्द आर्थिक आपातकाल लागू हो सकता है। यह आपातकाल केवल वेतन भत्तों तक सीमित नहीं रहेगा।इसका असर भारत के प्रत्येक नागरिक के आर्थिक आधार और उसके मौलिक अधिकारों को प्रभावित करने वाला होगा। राजनैतिक प्रशासनिक समीकरण भी आपातकाल लागू होते ही बदल जाएंगे।