Covid 19 : “महाभारत का युद्ध 18 दिन में जीता गया था. आज कोरोना के ख़िलाफ़ जो युद्ध पूरा देश लड़ रहा है, हमारा प्रयास है कि इसे 21 दिन में जीत लिया जाए. महाभारत के युद्ध के समय भगवान कृष्ण महारथी थे, सारथी थे. आज 130 करोड़ महारथियों के बलबूते हमें कोरोना के ख़िलाफ़ इस लड़ाई को जीतना है.”
बुधवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी की जनता से बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बात कही. निश्चित तौर पर कोरोना के ख़िलाफ़ महाभारत की लड़ाई में जनता के योगदान को कोई नकार नहीं सकता. लेकिन लड़ाई के महारथी और सारथी का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है.
1. डॉक्टर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ़
Covid 19 : जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के एक डॉक्टर ने पहली बार इस तरह की तस्वीर पोस्ट किया. तब से ये एक लाइन डॉक्टरों की आपबीती कहने का सबसे अहम माध्यम सा बन गया. भारत में डॉक्टरों की कमी है, ये बात किसी से छिपी नहीं है. 1000 लोगों पर एक डॉक्टर को विश्व स्वास्थ्य संगठन सही मानता है. लेकिन अफ़सोस भारत में इतने डॉक्टर भी नहीं. मास्क की कमी, गाउन की कमी, बेड की कमी, वेंटिलेटर की कमी – इन सब शिकायतों से भरा कई फेसबुक पोस्ट आप सबने अपने फेसबुक फीड में देखा होगा. लेकिन किसी डॉक्टर को ये कहते नहीं सुना होगा की हम मरीज़ो का इलाज नहीं करेंगे.
पैनिक में आकर जब हम घरों से निकल कर मास्क और सैनिटाइज़र ख़रीद रह थे, तब हममें से शायद ही किसी के जेहन में उन डॉक्टरों का ख्याल आया होगा, जो मुश्किल की इस घड़ी में इन चीज़ों की कमी के बावजूद इलाज में 24 घंटे जुटे हैं. लॉकडाउन में लोग घरों में बैठे हैं, लेकिन वो आज भी पहले के मुकाबले ज्यादा घंटे काम कर रहे हैं. सभी डॉक्टरों की छुट्टियां रद्द कर दी गई है. इस आपदा में डॉक्टरों और नर्सों ने मरीज़ो को परिवार मान लिया है. कोरोना के ख़िलाफ़ भारत की इस लड़ाई में वो सभी डॉक्टर सबसे पहले सारथी हैं, जिनके बूते इस जंग को हर भारतीय लड़ कर जीतना चाहता है.
डॉक्टर्स जयपुर गोल्डन, एम्स के हों या मेदांता के या फिर गंगाराम अस्पताल के या फिर लखनऊ या पटना के या फिर किसी दूर-दराज़ इलाक़े के, सभी ज़ोर-शोर से अपने काम में लगे हैं. लेकिन इन डॉक्टरों के साथ पैरा मेडिकल स्टॉफ़ जैसे नर्स, लैब टेक्नीशियन आदि के काम को सराहा जा रहा है और डॉक्टर ख़ुद इनकी सराहना कर रहे हैं. क्योंकि कई अस्पतालों में इन लोगों को बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही हैं.
2. प्रो. बलराम भार्गव, आईसीएमआर, महानिदेशक
Covid 19 : अचानक से आई एक नई बीमारी के लिए विश्व के किसी देश में कोई तैयारी नहीं थी. किसी ने कभी सोचना ना था कि करोड़ो की संख्या में नई तरह के टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ेगी. यही वजह है कि हर देश अपने लिए विशेषज्ञों की एक टीम के साथ इस कोरोना वायरस का सामना कर रहा है. भारत में इस टीम की नुमाइंदगी कर रहे हैं प्रो. बलराम भार्गव. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के वो महानिदेशक हैं, जो इस नई बीमारी से लड़ने के लिए नए रिसर्च में जुटी है.
अप्रैल 2018 को उन्होंने ये पदभार ग्रहण किया. प्रो. भार्गव एम्स में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर हैं. भारत में कोरोना वायरस के लिए टेस्टिंग किट की कमी आने वालें दिनों में ना हो इसलिए प्राइवेट लैब्स के साथ इन्होंने मिल कर काम किया और दो लैब्स को टेस्टिंग किट बनाने की आईसीएमआर ने हाल के दिनों में अनुमति भी दी है. इन किट को अब से पहले एफ़डीए से मंजूरी लेनी पड़ती थी. लेकिन समय के अभाव में मेक-इन-इंडिया बेसिस पर आईसीएमआर ने अप्रूव किया है ताकि समय रहते ये मरीज़ों तक पहुंच सके.
हाल ही में कुछ मरीज़ों पर रेट्रोवायरल ड्रग की टेस्टिंग की गई, कब और किन परिस्थितियों में ऐसा किया जा सकता है ये शोध का विषय होता है. प्रो. भार्गव की टीम ही इस तरह की गाइडलाइन जारी करती है. भारत में कब किन लोगों की कोरोना की टेस्टिंग होनी है, इसका दायरा किन परिस्थितियों में बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए भी दिन रात आईसीएमआर ही काम कर रहा है. भारत में कोरोना संक्रमण अभी दूसरे चरण में हैं और कब तीसरे चरण में प्रवेश करेगा, इन सब पर अनुसंधान की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं के कंधों पर है.
प्रो. भार्गव को भारत सरकार पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है.
प्रो. भार्गव कार्डियक अरेस्ट के मरीज़ो के लिए एक चेस्ट कंप्रेशन डिवाइस इजाद करने के काम में भी लगे हुए हैं. लंदन का मशहूर वैलकम ट्रस्ट उनके इस प्रोजेक्ट को फंड कर रहा है. भारत और स्टैनफोर्ड के बीच एक फ़ैलोशिप प्रोग्राम चलता है जिसे इंडिया स्टैनफोर्ड बॉयोडिज़ाइन प्रोग्राम के नाम से जाना जाता है. इसके तहत कम क़ीमत वाले इम्प्लांट और डिवाइस कैसे बनाई जाए इस पर स्टडी को बढ़ावा दिया जाता है. प्रो भार्गव को इसी में महारथ हासिल है. उन्होंने इस प्रोग्राम के तहत दिल्ली के एम्स में स्कूल ऑफ बायोडिजाइन की स्थापना कराई है, जो अब तक 30 ऐसे उपकरणों का इजाद कर चुके हैं. इसकी वजह से भारत में 10 नए स्टार्ट-अप की स्थापना हुई है.
3. लव अग्रवाल, ज्वाइंट सेक्रेटरी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय
Covid 19 : देश में कोरोना के रोज़ आ रहे नए मामले हों या फिर इस दिशा में केंद्र सरकार क्या क़दम उठा रही है, इसकी जानकारी या फिर राज्यों से कोरोना पर क्या सहयोग अपेक्षित है इस पर बयान, आपदा के इस दौर में इन सब की जानकारी मीडिया तक पहुंचाने की सबसे अहम भूमिका केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल निभा रहे हैं.
लव अग्रवाल 1996 के आंध्र प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. 2016 से केंद्र सरकार में इस पद पर काम कर रहें हैं.
कोरोना से निपटने के लिए सरकार की तरफ से जो सभी मंत्रालयों की जो टीम है उसके कोर्ओडिनेशन की ज़िम्मेदारी इनकी है. लव अग्रवाल उत्तर प्रदेश में सहारनपुर से आते हैं. उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. इससे पहले आंध्र प्रदेश में काम करते हुए आपदाओं से निपटने का इनका पुराना अनुभव रहा है. वहां के आपदा प्रबंधन विभाग में बतौर कमिश्नर वो काम कर चुके हैं. आंध्र प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन के अलावा शिक्षा और राजस्व विभाग में भी उन्होंने काम किया है.
4. डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री
Covid 19 : इटली में कोरोना का पहला मामला आने के 39 दिन बाद, कोरोना के संक्रमण का तीसरा चरण शुरू हो गया था. अमरीका में कोरोना का पहला मामला आने के 43 दिन बाद कोरोना के संक्रमण का तीसरा चरण शुरू हो गया था. लेकिन भारत में कोरोना का पहला मरीज़ आने के 54 दिन बाद भी अभी हम संक्रमण के तीसरे चरण में नहीं पहुंचे हैं. ऐसा भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है. इस मंत्रालय की कमान है पेशे से ईएनटी सर्जन डॉ. हर्षवर्धन के हाथ में.
भारत सरकार ने अब तक कोरोना से लड़ने के जो भी प्रयास किए हैं वो काफ़ी है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन समय रहते इस बीमारी के ख़तरे को हम भांप गए इसमें किसी को दो राय नहीं है. भारत ने कोरोना से लड़ने के लिए इस साल जनवरी के महीने से ही एयरपोर्ट पर विदेश से आ रहे यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी. इसके अलावा सरकार ने एक मंत्रियों का समूह तक फरवरी की शुरुआत में गठित कर दिया था. फ़िलहाल हर घंटे देश में कोरोना की स्थिति पर स्वास्थ्य मंत्री की नज़र रहती है और मंत्रियों के समूह को इसकी जानकारी देने का काम भी इन्हीं के ज़िम्मे है.
सेफ़ हैंड चैलेज हो या फिर सोशल डिस्टेंसिग- कोरोना से लड़ने के सभी उपायों को इन्होंने पहले ख़ुद आज़माया और फिर लोगों को अपनाने के लिए प्रेरित किया. आज कोरोना पर भारत के प्रयासों की सराहना विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने की है. डब्लूएचओ के कार्यकारी निदेशक डॉ. माइकल रेयान ने कहा कि भारत ने चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों से लड़ने में भी दुनिया को राह दिखाई है. गौरतलब है कि भारत में पोलियो के ख़िलाफ़ लड़ाई में डॉ. हर्षवर्धन की भूमिका को आज भी सराहा जाता है.
दिल्ली में अक्तूबर 1994 में पहली बार पूरे राज्य में पोलियो टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई और दूसरा चरण दिसंबर में शुरू किया गया. साल 1994 में डॉक्टर हर्षवर्धन दिल्ली सरकार में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे. उन्होंने दिल्ली में तीन साल तक की उम्र के बच्चों के लिए पोलियो ड्रॉप अभियान बड़े स्तर पर शुरू किया और इस आगे चल कर पूरे देश में लागू किया गया. इस काम के लिए उन्हें रोटरी क्लब के ‘पोलियो ईरेडिकेशन चैंपियन अवार्ड’ से नवाज़ा गया. ये अवार्ड पाने वाले वो पहले भारतीय हैं.
साफ़ है कि बड़े और नए बीमारी के प्रकोप से निपटने के लिए भारत को कैसी रणनीति बनानी है, इसका पुराना अनुभव हर्षवर्धन के काम आ रहा है. देश में तंबाकू विरोधी क़ानून की परिकल्पना इन्होंने की थी, जो आगे चल कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद क़ानून बना. हर्षवर्धन ने कानपुर से एमबीबीएस की पढ़ाई की है. दिल्ली में पांच बार विधायक रह चुके हैं. बतौर सांसद ये उनका दूसरा कार्यकाल है.
5. नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री, भारत
Covid 19 : जिस तरह दुनिया ने पहली बार कोरोना वायरस का नाम पिछले साल दिंसबर में सुना. उसी तरह से इस वायरस से निपटने के लिए एक तरीका ‘जनता कर्फ्यू’ भी हो सकता है, ये पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने ही दुनिया को बताया.
19 मार्च को जब प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की थी, उससे पहले शायद ही किसी को ऐसे शब्द के बारे में पता था.
भारत के इतिहास में जो रेल सेवा कभी पूरी तरह से बंद नहीं हुई, उस रेल सेवा को बंद करने का निर्णय लेने का साहस इन्होंने दिखाया. हालांकि विपक्ष आज भी सरकार के फ़ैसलों पर सवाल उठा रहा है, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पर शुरूआत से ज्यादा ध्यान ना देने और ग़रीबों के साथ साथ सभी प्रभावित सेक्टर के लिए पर्याप्त राहत पैकेज ना दिए जाने की शिकायत भी लोग कर रहे हैं है.
लेकिन इतिहास में ना झांकते हुए वर्तमान के उठाए क़दमों की सराहना विपक्ष की पार्टियां भी कर रही है.
कोरोना संक्रमण से लड़ने वालों के आभार के लिए ताली और थाली के इनके फार्मूले पर भी लोगों ने आपत्ति जताई लेकिन इनके विपक्षियों ने भी उनके समर्थन में ताली बजाई. हालांकि लोग ताली और थाली बजाते समूह में निकल गए, तो मोदी की आलोचना भी हुई. लेकिन मोदी ने स्पष्टीकरण दिया और लोगों को फटकार भी लगाई और उन्हें इसके ख़तरे के प्रति आगाह भी किया.
चीन ने कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन जैसा सख़्त कदम 30 लोगों के मारे जाने के बाद उठाया, इटली में लॉकडाउन का क़दम तब उठाया गया जब मरने वालों की संख्या 800 पहुंच चुकी था. इन देशों के मुकाबले भारत ने ये कदम तब उठाया जब कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 10 भी पार नहीं किया था. इस कठिन फ़ैसले की तारीफ़ दबी ज़ुबान से सभी कर रहे हैं.
कोरोना के ख़िलाफ़ महाभारत की तरह वाली ये जंग भारत जीतेगा या हारेगा, ये आने वाले वक़्त में पता चलेगा, लेकिन इन पांच लोगों का यहां जिक्र करने का ये अर्थ कतई नहीं कि बाक़ी लोगों का योगदान इस लड़ाई में कम है. इनके अलावा भी कई ऐसे लोग हैं, कई ऐसी संस्थाएँ हैं, विभाग हैं, जो न सिर्फ़ वायरस के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई को प्रभावी बनाने में लगे हैं, बल्कि अपनी निजी जिंदगी भी दाँव पर लगा रहे हैं.