नई दिल्ली, सत्यकेतन समाचार। पिछले दिनों ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की वजह से लोगों को हो रही परेशानी के लिए माफ़ी मांगी। उन्होंने कहा मैं सभी देशवासियों से दिल से माफ़ी मांगता हूं। मुझे लगता है कि आप मुझे माफ़ कर देंगे। उन्होंने कहा चूंकि कुछ फ़ैसले लेने पड़े जिससे आपके सामने तमाम मुश्किलें आ पड़ी हैं। जब मेरे ग़रीब भाइयों और बहनों की बात आती है तो वे सोचते होंगे कि उन्हें कैसा पीएम मिला है, जिसने उन्हें मुश्किलों में झोंक दिया है। मैं दिल की गहराई से उनसे माफ़ी मांगता हूं।
प्रधानमंत्री के माफ़ी मागंने के बावजूद कई सवाल खड़े हो रहे है। जिनके जवाब देश के हर नागरिकों के जहन में उमड़ रहें हैं।
- क्या प्रधानमंत्री का माफ़ी मांगना काफ़ी है ?
- सरकार प्रवासी मज़दूरों को लेकर इस क़दर बेपरवाह क्यों थी ?
- सरकार इस मानवीय संकट का अंदाज़ा क्यों नहीं लगा पाई ?
- देश में इस तरह के कड़े उपायों को लागू करने से पहले इनके परिणामों और इनकी क़ीमत पर चर्चा क्यों नहीं की गई ?
- जो ग़रीब लोग पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम (पीडीएस) या पीएमजीकेवाई में कवर नहीं हो पा रहे हैं उनके लिए क्या प्रावधान हैं। इन खामियों को दूर क्यों नहीं किया गया ?
- क्या लॉकडाउन के अलावा भी कोई विकल्प था ?
- दक्षिण कोरिया से भारत ने सबक़ क्यों नहीं लिया ?
- डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बाद भी टेस्टिंग पर जोर क्यों नहीं दिया गया ?
- निजी लैब्स को टेस्टिंग किट्स बनाने की मंज़ूरी में देरी क्यों ?
- वेंटिलेटर्स की कमी कैसे पूरी होगी ?
- जो बाहर से प्रवासी देश में आए उन्हें वहीं कॉरंटाइन क्यों नहीं किया गया ?
- जब जनवरी में ही भारत में पहला केस सामने आ गया था तो इतनी देरी क्यों हुई ?
सरकार प्रवासी मज़दूरों को लेकर इस क़दर बेपरवाह क्यों थी ?
बड़े शहरों से गाँव और कस्बों की ओर पलायन तभी शुरू हो गया था जब प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए 24 मार्च की रात 8 बजे पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान किया था। लॉकडाउन का उद्देश्य था कि लोगों को समूहों में जमा होने से रोका जा सके लेकिन ये प्रवासी पैदल समूहों में जाते दिखे।
दिहाडी मजदूरों का काम बिल्कुल खत्म हो गया। देश के अलग अलग हिस्सों में मजदूर गरीब लोग हर दिन काम करके अपना घर चला रहे थे। काम बंद होने से बुनियादी चीज़ें नहीं मिलने की दिक्क़तों से जूझना पड़ा। लेकिन पीएम के भाषण पर एक नजर डालें तो उसमें कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं था कि कंस्ट्रक्शन और असंगठित क्षेत्र के मज़दूर इससे कैसे निपटेंगे। कई मीडिया रिपोर्ट्स की रिपोर्ट के अनुसार बात सामने आई है कि भूख, बीमारी, ज़्यादा पैदल चलने की वजह से और सड़क हादसों में कई मज़दूरों की मौत हुई है। 2017 के इकॉनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि 2011 से 2016 के बीच क़रीब 90 लाख लोग एक राज्य से दूसरे राज्य पैसे कमाने के लिए गए। 2011 की जनगणना के मुताबिक़, देश के अंदर एक जगह से दूसरी जगह जाने वाले प्रवासी मज़दूरों की संख्या क़रीब 1.39 करोड़ है।
भारत सरकार ने राहत के लिए लोगों को परेशानियों का समाधान करने हेतू ग़रीब तबके के लिए कैश ट्रांसफ़र और राशन वितरण जैसे उपायों का ऐलान किया है लेकिन कई मज़दूरों के पास न तो बैंक खाते हैं न ही राशन कार्ड। सरकार ने ऐलान किया कि मकान मालिक लॉकडाउन के दौरान मज़दूरों से इस महीने का किराया नहीं मांगेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को जब 21 दिनों के लिए लॉकडाउन की घोषणा की तो उन्होंने ये सारी बातें नहीं कही थीं। उन्हें लोगों को आश्वस्त करना चाहिए था कि सरकार रहने और खाने-पीने की समस्या नहीं होने देगी।
इसके साथ ही पीएमजीकेवाई, (PMGKY) प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना आवंटन के तहत कैश ट्रांसफर के लिए आवंटित 31,000 करोड़ रुपए की रक़म जो प्रधानमंत्री जनधन योजना वाले खातों में जाएगी, उससे हर ग़रीब के खाते में हर महीने 500 रुपए आएंगे। यह शुरुआती तीन महीने चलेगा। किसी भी औसत परिवार के लिए 500 रुपए महीने में घर चलाना नामुमकिन है।
24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि सरकार यह देख रही है कि किस तरह से इस महामारी ने दुनिया के विकसित देशों को भी घुटनों पर ला खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इन देशों ने इससे निपटने के लिए पर्याप्त क़दम नहीं उठाए या इनके पास संसाधनों का अभाव था। हक़ीक़त यह है कि कोरोना वायरस का फैलाव इतनी तेज़ी से हुआ है कि सारी तैयारियों और कोशिशों के बावजूद दुनिया के देश इससे निपटने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग ही फ़िलहाल इससे प्रभावी तौर पर जीतने का एकमात्र ज़रिया है।
दक्षिण कोरिया से भारत ने सबक़ क्यों नहीं लिया ?
लेकिन, दक्षिण कोरिया अपने यहां इस बीमारी की चपेट में आने वालों की संख्या को कम करने में सफल रहा है और उसकी वजह ज़्यादा से ज़्यादा टेस्टिंग करना रही है।
डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बाद भी टेस्टिंग पर जोर क्यों नहीं दिया गया ?
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) लगातार इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि इस महामारी को रोकने में सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही सबसे अहम टेस्टिंग है।
सरकार और सिस्टम की आलोचना शुरू हुई तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने दिल्ली में बसें भेज दीं और ये बसों में एक साथ बैठकर गए। ऐसे में लॉकडाउन को लेकर सोशल डिस्टेंस बनाए रखने का मामला भी ध्वस्त होता दिखा।
निजी लैब्स को टेस्टिंग किट्स बनाने की मंज़ूरी में देरी क्यों ?
भारत में किट्स की कमी से यह पता चल रहा है कि यहां पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है। शुरुआत में आईसीएमआर ने यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और यूरोपियन सीई सर्टिफिकेशंस वाली टेस्टिंग किट्स को मंज़ूरी दी। इसमें चेन्नई बेस्ड ट्राइविट्रोन हेल्थकेयर जैसी भारतीय कंपनियों को छोड़ दिया गया।
ट्राइविट्रोन चीन को पाँच लाख किट्स भेज चुकी है। हालांकि, कंपनी ऐसी किट्स को विकसित कर रही है जिनके ज़रिए एक दिन में हज़ारों सैंपल्स को टेस्ट किया जा सके, लेकिन सरकार ने शुरुआत में तकरीबन दोगुनी क़ीमत पर किट्स का आयात किया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, काफ़ी बाद में पॉलिसी में बदलाव किया गया कि ऐसे स्वदेशी मैन्युफैक्चरर्स को भी इजाज़त दी जाए जिन्हें पुणे के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से टेस्ट की मंज़ूरी मिल चुकी है।
दुनिया में सबसे कम टेस्टिंग वाले देशों में भारत क्यों ?
27 मार्च तक भारत ने केवल 26,798 टेस्ट किए थे, जो दुनिया भर में देशों के किए जा रहे सबसे कम टेस्ट्स में हैं। इस बात का कोई स्पष्ट डेटा नहीं है कि भारत में कितने टेस्ट उपलब्ध हैं और टेस्टिंग किट्स की कमी की वजह से टेस्टिंग का क्राइटेरिया सख्त है। केवल उन लोगों की टेस्टिंग की जा रही है जो कि या तो इस महामारी से प्रभावित देशों की यात्रा करके लौटे हैं या कोविड-19 के मरीजों के संपर्क में आए हैं।
भारत को इन सवालों से भी जूझना पड़ रहा है कि उसने समय रहते किट्स और पीपीई का उत्पादन क्यों नहीं बढ़ाया। साथ ही वेंटिलेटर्स के लिए भी गंभीरता से कोशिशें क्यों नहीं हुई।
वेंटिलेटर्स की कमी कैसे पूरी होगी ?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक़, भारत के पब्लिक सेक्टर के पास केवल 8,432 वेंटिलेटर हैं जबकि प्राइवेट सेक्टर के पास 40,000 वेंटिलेटर हैं। टाटा मोटर्स, महिंद्रा एंड महिंद्रा, हुंदई मोटर इंडिया, होंडा कार्स इंडिया और मारुति सुज़ुकी इंडिया से सरकार ने वेंटिलेटर बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए कहा है। वेंटिलेटरों की ज़रूरत कोविड-19 से गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों को लाइफ सपोर्ट देने में पड़ती है। एक्सपर्ट्स कह चुके हैं कि भारत को देश में वेंटिलेटरों की मौजूदा संख्या के मुक़ाबले 8-10 गुना ज्यादा तक वेंटिलेटरों की ज़रूरत पड़ेगी।
कोरोना वायरस की महामारी से लड़ने के लिए भारत सरकार के उपायों को लेकर कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब नहीं मिल पा रहे हैं।