भारतीय शिक्षा पर ईसाई धर्म का योगदान

भारतीय शिक्षा पर ईसाई धर्म का योगदान

सोलहवीं शताब्दी के दौरान ईसाई मिशनरी ने संत फ्राँसिस जैवियर के जीवन काल के दौरान भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। जिससे संत जैवियर का नाम आज भी भारत के कई कॉलेजो से सम्बंधित हैं। पुर्तग़ालियों के भारत आने और गोवा में जम जाने के बाद से ही ईसाई पादरियों ने भारतीयों का धर्म परिवर्तन करना शुरू क्र दिया। ईसाईयों ने बौद्धिक स्तर पर तो भारतीयों के मस्तिष्क को प्रभावित किया ही, साथ ही अपने चिकित्सा कार्यो से भी यूरोपीय व ईसाई सिधान्तो का प्रचार-प्रसार किया।

ईसाई मिशन ने बिना पर्याप्त जानकारी के भारतीय धर्म की अनुचित आलोचना की, जिससे की भारतीयो में कुटुरता उत्पन्न हो गई। लेकिन ईसाई पादरियो ने भारतीय सामाजिक उत्थान के लिए निसंदेह रूप से योगदान दिया। उन्होंने भारतीय नारी की दयनीय, असम्मानजनक स्थिति, सती प्रथा, बाल हत्या, बाल-विवाह, बहुविवाह और जातिवाद जैसी कुरीतियों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। इन सामाजिक व्याधियों को समाप्त करने में ईसाई मिशनरियों का बहुत बड़ा योगदान है।

ईसाईयों ने की भारत में स्कूल और कॉलेज खोलने की स्थापना

शिक्षा के लिए प्रारंभिक ईसाई धर्म का योगदान लोगों को अलग-अलग सामाजिक स्तर और जातीय पृष्ठभूमि से समान रूप से व्यवहार करना है, और पुरुषों और महिलाओं के लिए समान शिक्षा प्राप्त करना समान है। मध्य युग में, शिक्षा मुख्य रूप से धार्मिक या राजनीतिक स्तर पर थी, जो आम लोगों की तुलना में चर्च के नेताओं और पादरी के प्रशिक्षण पर जोर देती थी। जबकि पुनर्जागरण, भिक्षुओं से धर्मनिरपेक्ष लोगों तक ध्यान केंद्रित किया गया था, लेकिन अधिकांश ऊपरी सामाजिक बच्चों और सामाजिक अभिजात वर्ग। सोलहवीं शताब्दी में प्रोटेस्टेंट सुधार ने अप्रत्यक्ष रूप से सार्वभौमिक शिक्षा और प्राथमिक, माध्यमिक और विश्वविद्यालय स्कूल प्रणाली के विकास को जन्म दिया। अधिकांश प्रसिद्ध समकालीन विश्वविद्यालय चर्च से संबंधित हैं।

सन् 1813 ई. में ईसाई पादरियों पर से रोक हटा ली गई और कुछ ही वर्षों के अन्दर इंग्लैण्ड, जर्मनी और अमेरिका से आने वाले ईसाई मिशन भारत में स्थापित हो गए और भारतीयों में ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। उन्होंने शैक्षणिक और चिकित्सा कार्यो में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारत के बड़े-बड़े नगरों में कॉलेजों की स्थापना की और उनका संचालन किया। इस मामले में एक स्काटिश प्रेसबिटेरियन मिशनरी अलेक्जेंडर डफ़ अग्रणी था। उसने 1830 ई. में कलकत्ता में जनरल असेम्बलीज इंस्ट्रीट्यूशन की स्थापना की और उसके बाद कलकत्ता से लेकर बंगाल के बाहर तक कई और मिशनरी स्कूल और कॉलेज खोले। अंग्रेज़ी भाषा सीखने के उद्देश्य से भारतीय युवक इन कॉलेजों की ओर भारी संख्या में आकर्षित हुए।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *