नई दिल्ली, सत्यकेतन समाचार। अमूमन हर उम्र का व्यक्ति सिरदर्द का अनुभव करता है। आमतौर पर सिरदर्द 100 से भी ज्यादा प्रकार के होते हैं, लेकिन कुछ प्रकार अन्य की तुलना में ज्यादा आम हैं। विश्व स्तर पर, पिछले साल लगभग आधी दुनिया ने कम से कम एक बार सिरदर्द का अनुभव किया। वहीं कुछ लोग हर महीने 15 या ज्यादा दिनों तक इसका अनुभव करते हैं। सिरदर्द को अक्सर हल्के में लिया जाता है और तबतक नजरअंदाज किया जाता है, जबतक वह गंभीर बनकर जीवन की गुणवत्ता को खराब न करने लगे। सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द गर्दन यानी की सिर के पिछले हिस्से में होता है। सही निदान के साथ इसके कारणों का सफल इलाज संभव है, जिसके बाद व्यक्ति को समस्या से पूरी तरह राहत मिल जाती है। दुर्भाग्य से जागरुकता में कमी के कारण इसका निदान ही नहीं किया जाता है। आमतौर पर, कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले पेशेवरों में गर्दन दर्द, माइग्रेन और तनाव के कारण होने वाले सिरदर्द की संभावना ज्यादा होती है। इसके मुख्य कारण तनावग्रस्त वातावरण और डिजिटल स्क्रीन पर लंबे समय तक काम करना हैं। हालिया लॉकडाउन में डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ा है। वहीं, वर्क फ्रॉम होम के दौरान लोगों ने शरीर की मुद्रा पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया, जिसके कारण सिरदर्द और रीढ़ की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द के बारे में
सरल शब्दों में कहा जाए तो यह दर्द सर्वाइकल स्पाइन या गर्दन से शुरू होता है। हालांकि, वास्तव में समस्या गर्दन में होती है, लेकिन इसका दर्द सिर और चेहरे के कुछ हिस्सों में फैल जाता है। इस समस्या से ग्रस्त हर व्यक्ति की गर्दन में जकड़न नहीं होती है, लेकिन उन्हें इसके दर्द का अनुभव अवश्य होता है। विभिन्न प्रकार की चीजें गर्दन में दर्द को ट्रिगर करती हैं, जैसे कि जॉइंट्स, डिस्क, गर्दन की मांसपेशियां और आसपास के टिशू। गर्दन के ऊपरी जॉइंट्स रीढ़ के ऊपरी हिस्से के नर्व डिसॉर्डर से जुड़े होते हैं, जो इस दर्द का मुख्य कारण है। व्यक्ति में यह दर्द गर्दन को हिलाने या गर्दन के मूवमेंट में कमी के साथ ट्रिगर हो सकता है। इस प्रकार के सिरदर्द में आम सिरदर्द की दवाइयां बिल्कुल असर नहीं करती हैं।

सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द महिलाओं में ज्यादा होता है। जिन कामों में सिर को लंबे समय के लिए झुकाकर रखना पड़ता है, जैसे कि हेयर स्टाइलिस्ट, ट्रक ड्राइवर आदि में इसका खतरा ज्यादा है। तथ्य बताते हैं कि यह समस्या उन्हें ज्यादा परेशान करती है, जो लंबे समय से तीव्र सिरदर्द की समस्या और गर्दन की मोच का शिकार हैं। आमतौर पर, इसमें सिर का एक हिस्सा शामिल होता है, जिसमें गंभीर दबाव का एहसास होता है, गर्दन को हिलाने पर दर्द बढ़ता है और आराम करने से राहत मिलती है। यह दर्द सिर के पीछे, आगे, ऊपर और साइड में हो सकता है। कई बार यह दर्द आँखों के आसपास महसूस होता है। इस सिरदर्द के साथ गर्दन और सिर में जकड़न की समस्या हो सकती है। साथ ही कई बार मरीजों को हाथों, कंधों और जबड़े में भी दर्द का अनुभव होता है।
सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द का निदान
इसके लक्षण कई अन्य प्रकार के सरिदर्द से मिलते-जुलते हैं, इसलिए इसका सही निदान थोड़ा मुश्किल होता है। गंभीर होने पर यह माइग्रेन का संकेत देता है। यहां तक कि यह दर्द अन्य सिरदर्दों के साथ भी हो सकता है जैसे कि माइग्रेन, जिसके कारण इसका निदान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। सिरदर्द की जानकारी के अलावा मेडिकल इतिहास की जानकारी जैसे कि तनाव का स्तर, ऑफिस का वातावरण, आहार और नींद की आदतें और मेडिकेशन की आवश्यकता पड़ती है। सही निदान के लिए अक्सर परीक्षणों और जांचों के साथ इंजेक्शन की जरूरत भी पड़ती है। जांचे जैसे कि एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई इसके निदान में सहायक साबित होती हैं।
सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द का प्रबंधन
सर्वाइकोजेनिक सिरदर्द का इलाज इसके स्थान पर निर्भर करता है। अधिकतर मामलों में जीवनशैली में बदलाव, फिजिकल थेरेपी, मेडिकेशन, दर्द निवारक इंजेक्शन और कुछ मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। इस सिरदर्द से लंबे समय के लिए राहत के लिए इसके मुख्य कारकों जैसे कि सोने की मुद्रा, सोने की गलत आदतें, ऑफिस में गलत मुद्रा में बैठना और जीवनशैली संबंधी अन्य आदतों की पहचान आवश्यक है। फिजिकल थेरेपी की मदद से भी लक्षणों में लंबे समय के लिए राहत मिलती है। मेडिकेशन जैसे कि एंटी-इंफ्लेमेटरी, मांशपेशियों को रिलैक्स करने वाली दवाएं और पेन किलर्स आदि की सलाह दी जाती है। हालांकि, इनके फायदे सीमित होते हैं, लेकिन फिजिकल थेरेपी के साथ इनका सेवन मरीज को समस्या से राहत देता है। गर्दन के जोड़, नसों या मांसपेशियों के इंजेक्शन के मुख्य उपचार में शामिल हैं क्योंकि ये न सिर्फ निदान की पुष्टि करते हैं, बल्कि दर्द में भी राहत देते हैं। सिरदर्द में लंबे समय के राहत के लिए एक्स-रे मार्गदर्शन के साथ रेडियोथेरेपी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, सर्जरी की जरूरत हमेशा नहीं पड़ती है, लेकिन गंभीर मामलों में कोई विकल्प न रहने पर सर्जरी करना जरूरी हो जाता है।