शरीर में किडनी, फेफड़े में खून के थक्के से भी हो रहा कोरोना वायरस, डॉक्टर भी हैरान

शरीर में किडनी, फेफड़े में खून के थक्के से भी हो रहा कोरोना वायरस, डॉक्टर भी हैरान

 blood clots also causing corona virus
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Corona Virus Live Update: कोरोना वायरस दुनियाभर में कहर बरपा रहा है। दुनियाभर में 25 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका यह वायरस नया है और इसको लेकर लगातार नई बातें सामने आ रही हैं। पता चला है कि यह वायरस इंसान के किडनी, फेफड़े और मस्तिष्क जैसे महत्वपूर्ण अंगों में खून के थक्के भी जमा देता है। इसे देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए।

मार्च के अंत में अमेरिका के न्यूयॉर्क में कोरोना तेजी से फैला तो माउंट सिनाई हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने कोरोना मरीजों के खून में बदलाव नोटिस किया। उन्होंने पाया कि संक्रमित लोगों के खून में थक्के जम रहे हैं। यह उन खतरनाक तरीकों में से एक है जिससे वायरस शरीर को तबाह कर देता है।

माउंट सिनाई हॉस्पिटल के नेफ्रोलॉजिस्ट ने पाया कि किडनी में खून के थक्के जम रहे हैं और डायलसिस की प्रक्रिया बाधित हो रही है। मैकेनिकल वेंटिलेटर पर COVID-19 रोगियों की निगरानी करने वाले पल्मोनोलॉजिस्ट (श्वास-रोग विशेषज्ञ) ने देखा कि फेफड़े के हिस्से रक्तहीन थे। न्यूरोसर्जन्स ने खून के थक्के जमने की वजह से स्ट्रोक के मामलों में वृद्धि देखी, जिनमें कई कम उम्र के थे और कम से कम आधे लोग कोरोना पॉजिटिव निकले।

अस्पताल के न्यूरोसर्जन डॉक्टर जे मोक्को ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यह वायरस खून के थक्के बना सकता है’ उन्होंने यह भी बताया कि कैसे कुछ केसों में कोरोना वायरस एक लंग डिजीज से बढ़कर है। एक कोरोना वायरस मरीज में पहला लक्षण स्ट्रोक के रूप में सामने आया।

कई विशेषज्ञों ने जब खून के थक्कों का बनना देखा तो इलाज के प्रोटोकॉल में बदलाव किया गया। अब मरीजों को खून पतला करने के लिए भी दवा दी जा रही है। हॉस्पिटल के प्रमुख डॉ. डेविड रेच ने कहा, ‘यदि आप खून का थक्का नहीं बनने देते हैं तो खतरा कम हो जाता है।’ हालांकि, नए प्रोटोकॉल के तहत हाई रिस्क मरीजों को खून पतला करने की दवा नहीं दी जा रही है क्योंकि इससे मस्तिष्क या दूसरे अंगों में ब्लीडिंग हो सकती है।

मध्य में तीन सप्ताह में मोक्को ने देखा कि स्ट्रोक के 31 मरीजों के मस्तिष्क में खून के बड़े थक्के थे। आमतौर पर इतने दिनों मे जितने मरीज आते थे उनसे यह संख्या दोगुनी थी। इनमें से 5 की उम्र 49 से कम थी। कम उम्र के लोगों में स्ट्रोक का खतरा कम होता है। एक मरीज की उम्र तो 31 ही थी। इनमें से आधे मरीज कोरोना संक्रमित निकले।

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