ममता जयंत । वक्त भले ही बीत जाए पर बीते वक्त के मायने कभी खत्म नहीं होते. अतीत के कुछ लम्हे जहाँ ज़िन्दगी को खुशनुमा और यादगार बनाते हैं वहीं कुछ ऐसा छोड़ जाते हैं जो यदा-कदा किसी की कमी का आभास कराता है. जिसके कुछ अंश हमारे रोजमर्रा के अनुभवों में शामिल रहते हैं! ऐसे ही अनुभवों और अनुभूतियों पर आधारित है सुप्रसिद्ध साहित्यकार/पत्रकार ‘प्रियदर्शन जी’ की पुस्तक “दुनिया मेरे आगे”. पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर दर्शाए गए पात मानो झर रहे हैं लेखक के मन-मस्तिष्क में प्रियजनों की स्मृतियां बनकर। इस दृष्टि से देखें तो किताब का कवर पेज खूबसूरती के साथ दार्शनिकता लिए हुए है।
यहां कहना सही होगा
टूट कर पात शाखों से जो झड़ गए
जा कर फिर से शजर पर वो बैठे नहीं
पुस्तक जहाँ जीने का साहस और संबल देती है वहीं वास्तविकता से परिचय कराती, रिश्तों के मायने सिखाती, बताती है कि जीवन में जो अनिश्चित है वही निश्चित है. पुस्तक में लेखक ने साहित्य की दुनिया को समृद्ध करने वाली विभिन्न विभूतियों के व्यक्तित्व, उनकी विशेषताओं और उनके संग बिताए स्वर्णिम पलों का सुन्दर चित्रण किया है.
लेखक ने जिन विशाल वटवृक्षों की छाया का सुख अपने जीवन में महसूस किया है उन यादों को एक सूत्र में पिरोते हुए स्मृतियों का एक सुन्दर संसार सजाया है. किसी वक्त मन की केसरिया क्यारियों में खिले फूलों की हवा के मन्द झोकों को एक बार फिर से महसूस किया है और अतीत को इस तरह सहेजा है कि पुस्तक स्मरणों का संकलन होते हुए भी रोचक बन पड़ी है जो पुस्तक की उल्लेखनीय विशेषता है. पुस्तक में अतीत किसी जड़ वस्तु सा नहीं बल्कि जीवित, तरल और गतिमान तत्व सा नज़र आता है.
लेखक की स्मृति में पुरखों का प्रकाश इस कदर चमकीला है कि उनके संग बिताए लम्हों को वे खुद का निर्माण मानते हैं. उनकी छाया लेखक के व्यक्तित्व पर एक आभा बनकर उभरती है. किताब में कहीं निर्मल वर्मा का एक चिथड़ा सुख है तो कहीं कृष्णा सोबती की समय-सरगम से बंधी एक यादगार शाम, कहीं राजेन्द्र यादव जी के किस्से हैं तो कहीं जगजीत सिंह की आवाज़ का जादू इसी तरह संकलन में बाइस हस्तियों का अलग-अलग ज़िक्र किया गया है। जिनके व्यक्तित्व, और विशेषताओं के बारे में जानने की दृष्टि से पुस्तक महत्वपूर्ण हो जाती है।
अपनी अधिकतम उम्र बिता कर परिपक्व अवस्था में जाने वाले महान कलाकारों के लिए वे लिखते हैं- “अब उनके जाने का शोक करें तो यह उनके उस योगदान का अपमान होगा जो वे दुनिया को देकर गए हैं”!
इस वाक्य में उनकी सजगता, संवेदनशीलता और सकारात्मक दृष्टिकोण साफ़ तौर पर नज़र आते हैं. प्रियदर्शन जी की पुस्तक दुनिया मेरे आगे यादगार और मानवीय मूल्यों से लबरेज़ है. लेखक की सशक्त शब्दावली किताब की कहन को वृहत्तर स्तरों पर समृद्ध बनाती है.
भाषा में सहजता और सरलता के साथ ऐसी सादगी भी है जो किसी प्रसंग को कृत्रिम होने से बचाए रखती है या कहा जाए उनकी सक्रियता का दायरा बड़ा है. कहीं-कहीं पाठक की आँखें नम करने में भी सफल हुए हैं यह निश्चित रूप से उनके लेखन की ताकत है. पुस्तक का प्रभाव यह है कि लेखक के कतिपय अनुभव पाठक मन पर अपना असर छोड़ जाते हैं. अगर उन्हीं के शब्दों में पुस्तक की बात करूँ तो अपनी कविता पंक्ति में वे लिखते हैं- “वह भी एक जीवन था जो हमने जिया था”।
पुस्तक – दुनिया मेरे आगे
लेखक – प्रियदर्शन