क्यों बार-बार लगती है भलस्वा और अन्य Landfill Sites पर आग, क्यों होता है इसे बुझाना मुश्किल?

क्यों बार-बार लगती है भलस्वा और अन्य Landfill Sites पर आग, क्यों होता है इसे बुझाना मुश्किल?

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देश में कई जगह कूड़े के पहाड़ आम लोगों के लिए समस्या बने हुए है। दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगरों में कूड़े के बड़े-बड़े पहाड़ बने हुए हैं। जिनमें आग लगने, जहरीली हवा और केमिकल युक्त पानी पर्यावरण के लिए भी एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। बीते कुछ समय से कूड़े के इन पहाड़ों में आग लगने से स्थानीय लोगों के लिए मुश्किलें अधिक बढ़ गई हैं।

आइए बताने की कोशिश करते हैं कि कूड़े के इन पहाड़ों पर बार-बार आग क्यों लगती है और इससे आम इंसानों को क्या नुकसान होते हैं।

आप के घर से भी जो कूड़ा उठाने के लिए गाड़ियां आती हैं, वह नगर पालिका का काम होता है। पहले छोटी-छोटी गाड़ियों से इस कूड़े को इकट्ठा किया जाता है, फिर छोटे डंपिंग साइट पर इकट्ठा किया जाता है। फिर बड़े ट्रकों में कूड़ा इकट्ठा करके इन्हें बड़े लैंडफिल साइट पर ले जाया जाता है। कचरे का सही समय से निस्तारण न हो पाने के कारण यह कूड़ा जमा होता जाता है और कूड़े का पहाड़ इकट्ठा हो जाता है।

इसी तरह के कूड़े के पहाड़ दिल्ली के गाजीपुर, भलस्वा और ओखला में, चंडीगढ़ के दादूमाजरा में और चेन्नई के पेरुंगुडी समेत और भी शहरों में मौजूद हैं। इन लैंडफिल साइट्स पर कूड़े के पहाड़ कई सौ फीट ऊंचे हो चुके हैं। इन पहाड़ों के पास गंदगी, जहरीली हवा और पानी की गुणवत्ता में खराबी जैसी समस्याएं आम हो गई हैं।

घरेलू कचरे में सब्जियों का कचरा, बासी खाना, प्लास्टिक कचरा, मिट्टी, पानी और कई अन्य कार्बनिक-अकार्बनिक पदार्थ होते हैं। इन चीजों के लंबे समय तक पड़े रहने से ये आंशिक तौर पर सड़ती हैं, जिससे मीथेन और कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनती है। मीथेन गैस काफी ज्वलनशील होती है। ऐसे में आग लगने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में छोटी-मोटी चिंगारी भी कई बार बड़ी आग का कारण बन जाती है। कई बार तो साइट पर काम करने वाले लोगों के बीड़ी या सिगरेट पीने से भी आग लग जाती है।

शहरों में कूड़े की मात्रा बहुत ज्यादा होने से जितने कूड़े का निस्तारण एक दिन में होता है, अगले दिन उससे कहीं ज्यादा कूड़ा फिर से आ जाता है। ऐसे में स्थिति ये हो जाती है कि कई दिनों और महीनों का कूड़ा पड़ा सड़ता रहता है और मीथेन जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है। जिसके कारण हमेशा आग लग जाती है।

आमतौर पर लैंडफिल साइट की न तो कोई प्लानिंग होती है और न ही आग रोकने या बुझाने के कोई इंतजाम होते हैं। बस एक तरफ से कचरा इकट्ठा किया जाता है और धीरे-धीरे ये कूड़े का पहाड़ बन जाता है। कूड़े की पहाड़ की आग को बुझाना मुश्किल इसलिए होता है, क्योंकि आग बड़े क्षेत्र पर एकसाथ लगी होती है। कूड़े के पहाड़ पर पानी पहुंचा पाना भी मुश्किल काम होता है। इसके अलावा, मीथेन गैस का लगातार उत्सर्जन होने की वजह से आग आसानी से बुझती ही नहीं है।