Quarantine Indian History: भारत के इस राज्य में 117 साल पहले भी हुए थे लोग क्वारंटाइन

Quarantine Indian History: भारत के इस राज्य में 117 साल पहले भी हुए थे लोग क्वारंटाइन

वर्ष 2019 से 2020 के बीच घातक रूप लेकर पूरे विश्व पर कब्ज़ा करने वाली महामारी, कोरोना वायरस के दौर को हम सबने जिया है. इस संक्रमित रोग से बचाव करने के लिए लगे लॉकडाउन और क्वारंटीन से भी हम पूरी तरह से वाकिफ़ हैं.

लेकिन, आपमें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो यह जानता होगा कि, क्वारंटीन संक्रमित रोग से निजात पाने का कोई आधुनिक तदबीर नहीं है. आज से करीब 117 सालों पहले भी, एक प्लेग नामक वैश्विक महामारी के कोहराम से बचने के लिए, लोग क्वारंटीन हुए थे. दरअसल यह बात है सन 1904 से 1914 के बीच मध्य प्रदेश की राजधानी, भोपाल की.

जी हाँ ! आपने बिल्कुल सही सुना, यह वही सन था जब भोपाल शहर में नवाब काल हुआ करता था. जिस तरह आज हर राज्य की सरकार अपने अपने स्तर पर कोविड-19 पर रोक लगाने के लिए ज़ोर दे रही है, ठीक उसी तरह 117 साल पहले प्लेग बीमारी को ज़्यादा लोगों तक न फैलने के लिए नवाब सुल्तान जहां बेगम ने अपने रियासत में लोगों को क्वारंटीन करने का बड़ा फैसला लिया था.

प्लेग संक्रमितों के लिए किस क़िस्म के प्रबंध किए गए थे ?

उस वक्त भोपाल रियासत ने बाहर से जाने वाले सभी लोगों को 10 दिनों तक कस्बे से बाहर स्थित, बाग़ उमराव दूल्हा में क्वारंटीन करने का इन्तेज़ामात किया था. नवाब सुल्तान जहां बेगम ने भोपाल स्टेशन पर भी सैनिक तैनात किये थे, ताकि किसी बीमार व्यक्ति में हेर फेर न हो जाए. उसके अलावा, नवाब सुल्तान ने प्लेग संक्रमितों की देख रेख की ज़िम्मेदारी “प्रिंस ऑफ वेल्स अस्पताल” के आधिकारिक लोगों को भी सौंपी थी.

नवाब सुल्तान जहां बेगम ने सभी को ख़ास 2 हुक्म जारी किए थे. पहला, जिनके घर में ज़्यादा सदस्य हैं, उन्हें अलग- अलग घर में रहना होगा। और दूसरा, आस पास की हवा में स्वच्छता बनाए रखने के लिए सभी को गंधक और लोबान जलाते रहना होगा ताकि वातावतरण साफ़-सुथरा और शुद्ध कायम रहे. रियासत में स्वास्थ्य सेवाओं के मकसद से 10 हजार रुपए का बजट भी मंजूर किया गया था।

मृतकों के लिए अलग कब्रिस्तान का इंतज़ाम।

इतने प्रबंधों के बावजूद, अगर कोई प्लेग महामारी का मरीज़ ख़त्म हो जाता था तो, उसके शव को श्मशान घाट या कब्रिस्तान ले जाने के लिए रियासत के नवाब ने कोतवालों को अलग क़िस्म के वाहन का इंतज़ाम करने का आदेश दिया था. श्मशान घाट में मृतकों का अंतिम संस्कार और लकड़ी आपूर्ति के लिए पंडित बिहारी लाल नारायण, मुंशी दौलत राय को जिम्मेदारी दी गई थी। और प्लेग मरीज़ों को दफ़नाने के लिए अन्य लाशों से हटकर कब्रिस्तान का भी वंदूवस्त कराया गया था.

कैसे करते थे नवाब अपने हुक्म को लोगो तक पारित

जानकारी के मुताबिक, भोपाल के नवाब, सुल्तान जहां बेगम ने सुरक्षा के सभी इंतजामों और ऐलानों का ज़िक्र रियासत की पत्रिका, इन्सदाद-ताऊन में की थी. उस दौर की इसी पत्रिका के ज़रिये नवाब अपने हुक्मों को कौम तक पहुंचाया करते थे.

टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं जैसे फतवे भी किए गए थे जारी

इन्सदाद-ताऊन में तत्कालीन ख्यातिलब्ध विद्वान, मौलाना रशीद अहमद गंगोही के मशहूर फतवे का भी ज़िक्र है। पत्रिका में लिखा है कि, टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं है, यह हुक्म सबको महज़ सेहत के मकसद से जारी किया गया है। मालूम हो कि, टीकाकरण करने के बाद उस वक़्त किसी को भी क्वारंटीन नहीं किया जाता था। उन्हें टिका के बाद केवल प्रमाण-पत्र दे दिया जाता था.

क्या आज भी उस दौर की पत्रिका है कहीं पर ?

नवाब सुल्तान जहां बेगम की वह पत्रिका जिसका नाम इन्सदाद-ताऊन है, वह अभी भी शहर के सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद है। यह लाइब्रेरी सदस्य रचित मालवीय की कस्टडी में है और उन्होंने हर पन्ने को बड़ी ही ख़ूबसूरती से सहेजकर रखा है।