ऋण माफ़ी का नशा, लेखक, ऋषि पाल गुप्ता

ऋण माफ़ी का नशा, लेखक, ऋषि पाल गुप्ता

लेखक, ऋषि पाल गुप्ता: एक ज़माने में लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया! उस समय वो उस मध्यम मेहनती वर्ग की कल्पना करना भूल गये जो कारखानों में काम करेगा, जो टैक्स भरेगा, जो बारह घंटे धूप गर्मी सहेगा, और जिसके उपर महंगाई का बोझ रहेगा! अक्सर वाद-विवादों में जिक्र उसका छूट जाता है, जो रात के दस बजे थककर, हारकर, मुंह लटकाए हुए घर आता है, बच्चों को सोता पाता है, खाना खाकर खुद भी सो जाता है, सुबह उठता है, और फिर काम पर निकल जाता है, न खेलता है, न बच्चों को खिला पाता है! अपनी मजदूरी पाता है, फिर बीवी से उस मनी-आर्डर की रसीद छुपाता है, जो पैसे उसने अपने माता-पिता के लिए भेजे हैं! और जब निकम्मे नेताओं का दौर आता है, तो बस मुठ्ठियाँ भीचकर वक़्त गुज़ार लेता है! उसकी चर्चा अक्सर छूट जाती है, जिसकी कमाई का एक भाग सरकारी खजाने में जाता है, और वो उस सरकारी मुलाजिम के दफ्तर में लाइन लगाता है जो सातवाँ वेतन आयोग पाकर नयी गाडी में आता है!

किसान की चर्चा होती है, होती रहेगी, होनी भी चाहिए, पर उस मजदूर का दोष क्या जिसके पैसे से चर्चा करने वाले बुध्हिजीवी यूरोप की सैर करके आते हैं, साम्यवाद के सपने दिखाते हैं, अंग्रेजी शराब में खान मार्किट का रुतबा बढ़ाते हैं! कुछ वर्ष पहले, २०१४ चुनाव के दौरान, मोदी जी ने पहली बार ये कहा, कि बेचारा सैलरी पाने वाला मज़दूर क्या करे, उसका तो जो भी धन है, सबके सामने है! वो बिचारा कुछ छिपा नहीं सकता! ऐसा उन्होंने आयकर न भरने वाले लोगों के सन्दर्भ में कहा होगा! पर हमारा इशारा सैलरी पाने वाले वर्ग से है क्योंकि ये वर्ग शायद उनसे ये आशा रखता है कि उनका ध्यान मोदी जी रखेंगे, समय साक्षी है, जो है वो सामने है, उस पर टिपण्णी करने की आवश्यकता नहीं! महंगाई पर नियंत्रण है, इसमें दो राय नहीं, पर एक मंदी नाम की चिड़िया भी पंख फड़-फ्डाने लगी है, मंदी पहले भी थी, पर जिनसे कोई उम्मीद न हो उनसे शिकायत कैसी? मोदी जी से उम्मीदें हैं, इसलिए, शिकायत भी होगी! इस वर्ग ने पहले कभी चुनाव में इस प्रकार से हिस्सा नहीं लिया, सरकारें बनती रहीं, चलती रहीं, ये वर्ग सब कुछ सहता रहा! किसलिए, इसलिए कि एक दिन उसका भी समय आएगा! क्या वो समय आ गया, कौन जानता है? पर ऐसा कभी-कभी लगता है कि वो दिन अब दूर भी नही! खैर, सबसे पहले किसानों की कुछ बातें कर लें, और बातें ऋण माफ़ी की अवश्य करेंगे जो इस देश पर बोझ बनती जा रही है, ऐसा लगता है कि किसानों का एक वर्ग केवल इस उम्मीद में जीता है, कि बैंक से ऋण ले लिया जाए, एक मोटर साईकिल खरीद ली जाए, जब चुनाव आयेंगे तो उसको वोट करेंगे जो ऋण माफ़ कर दे, ऐसा होता भी है! कुछ ऐसा भी सुनने में आया कि वो किसान जो अपना ऋण देते आ रहे थे।

उनका ऋण माफ़ नहीं हुआ, माफ़ उनका हुआ जो नहीं देते थे! मेहनती और ईमानदार किसानों ने अपने आप को ठगा हुआ महसूस भी किया, ऐसा सभी के साथ नहीं हुआ, पर उनके कुछ लोगों के साथ अवश्य हुआ जो इमानदारी से अपने ऋण की अदाएगी करते आ रहे थे! एक दृष्टि में ऐसा लगता है कि सरकारी योजना केवल उन किसानों के लिए थी जो अपना ऋण नहीं भरते थे! और उनके खिलाफ थी, जो ऋण लेते थे, फसल उगाते थे, फसल बेचते थे, ऋण चुकाते थे, और नये साल पर फिर यही प्रक्रिया दोहराते थे! पर ये ऋण आता कहाँ से है, उस नेता की जेब से तो नहीं, जो ऋण माफ़ी की बात करता है, उस बुद्ध्हिजीवी की जेब भी नहीं आता जों खान मार्किट में शराब पी रहा है! ये पैसा उस मजदूर की जेब से आता है को अभी भी किसी कारखाने में काम कर रहा है, रात के दस बजे हैं, किसान सो रहा है, नेता नोट गिन रहा है, बुध्हीजिवी अपने विशेष चर्चाओं में व्यस्त है, और बेचारा मजदूर ये कोशिश कर रहा है कि कैसे काम खत्म करके बच्चों के सोने से पहले घर कैसे पंहुचा जाए!
अगर कुछ किसानों को बार-बार ऋण माफ़ी की जरुरत पड़ती है तो उन्हें कुछ और सोचना चाहिए, जो ऐसा सोचते हैं कि ऐसी योजनायें अब ज्यादा दिन चलने वाली हैं, तो ये समझें की आने वाली पीढ़ी न भ्रमित है, न ही अ-निर्णय से पीड़ित है! कई ऐसे नेता जों ऋण माफ़ी की वकालत करते हैं, उनका दौर लगभग अब समाप्ति की और है, दुबारा नहीं आने वाला! वो एक समय था, ये भी एक समय है! बहुत दिनों से गठबंधन राजनीति के ऊपर चोट पर चोट यूँ ही नहीं पड़ रही, ये पीढ़ी ये लातें मार रही है, वो भी मन बनाकर, समय के साथ ये लातें और तेज होंगी!
गौरतलब है कि ये लातें कैसी होंगी? आने वाले समय में टेक्नोलॉजी वो सब करने लगेगी जिसके लिए शारीरिक श्रम की आवश्यकता पड़ती है, या फिर अनाज कहीं और से आने लगेगा, किसान क्या करेगा?

किसान उस दिन को कोसेगा जब ऋण माफ़ होने लगा था, आदत बिगड़ने लगी थी, बैंक घाटे में जाने लगे थे, और एक दिन इतना भी ऋण मिलना बंद हो गया कि खेती की जा सके! जिस ईमारत की नींव कमज़ोर हो वो ज्यादा दिन तक नहीं खड़ी रह सकती! ऋण माफ़ी वो दीमक है जो आज किसान के एक वर्ग को लग तो गयी हैं, पर निकाली जा सकती है! पेड़ खत्म हो, ये आवश्यक नहीं! सबसे बड़ी चिंता यह नहीं है की ऋण माफ़ी की जाए या नहीं! सबसे बड़ी चिंता वो है जो विचार पटल पर विधमान ही नहीं है! आज विश्व में वैश्विक समझौतों का दौर है, मुख्य रूप से ट्रेड अग्रीमेंट्स, जिनसे भारत अब अछूता नहीं रह सकता, इसका ये असर पड़ेगा कि एक दिन भारत ये समझौते टाल नहीं पायेगा, तब विदेशी अन्न भारत के बाजारों में आधी कीमत पर आएगा! मज़दूर तो बच जाएगा, पर किसान कहाँ जाएगा, उसका अनाज खेतों में पड़ा-पड़ा सड़ जाएगा!

अपनी जमीनें छोड़कर, वो शहर आएगा और फिर बारह घंटे काम करने वाला मज़दूर बन जाएगा! आज किसान को बचाना है तो अपने पैरों पर खड़े होना सिखाना होगा, गोदी की सवारी अब ज्यादा दिन चल नहीं सकती! ये ऋण माफ़ी वो जंजाल है जिसमे किसानों का एक वर्ग धंसता चला जा रहा है! किसान को व्यवसायी बनाना होगा, जिससे वो बैंक से पैसा ले, फसल उगाये, फसल बीमा कराये, और बाज़ार में बेचे!
मरहम के नाम पर अफीम दर्द तो उड़ा सकती है, पर मर्ज़ और भी गहरा हो जाता है।

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