‘पहाड’ अध्यात्म, शान्ति और आनन्द के प्रदाता – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, सत्यकेतन समाचार। प्रतिवर्ष दुनिया भर में 11 दिसंबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि पर्वतीय क्षेत्र के सतत् विकास के लिये जनसमुदाय को जागरूक करना, पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के प्रति अपने दायित्वों को समझना और मिलकर सतत विकास की ओर बढ़ना।

‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस’ पहाड़ों में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2003 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया था। ज्ञात हो कि पृथ्वी की सतह के लगभग 22 प्रतिशत हिस्से पर पहाड़ हैं, जहाँ पर विश्व भर के 915 मिलियन लोग (विश्व की जनसंख्या का 13 प्रतिशत) निवास करते हैं इसलिये पहाड़ों के विकास के साथ प्रकृति और पहाड़ों को प्रदूषण मुक्त रखना मानव समुदाय की नैतिक जिम्मेदारी है।

अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड के पहाडों ने ही दुनिया को पवित्र नदी गंगा जी के दर्शन कराये हैं। इन पहाड़ों की गोद में प्राकृतिक संसाधन, अनेक दुुलर्भ औषधियों के अनमोल खजाने हैं। नैसर्गिक सौंदर्य से युक्त ये पहाड़ अध्यात्म, शान्ति और आनन्द के प्रदाता है। जब उत्तराखण्ड के पहाड़ो की हम बात करते है तो हिमालय जो हम सभी को शान्ति देने वाला, हमारी विरासत, संस्कृति और सभ्यता को सुरक्षित रखने वाला है, उस के विषय में चिंतन करने का समय आ गया है क्योंकि इन पहाड़ों की पीड़ा भी पहाड़ जैसी विशाल है। कभी मनुष्य, पशु-पक्षी और विविध प्राणियों की हलचल और कलरव से गूंजने वाले ये पहाड़ आज प्रदूषण और पलायन का दर्द झेल रहे है।

स्वामी ने कहा कि पहाड़ों की पीड़ा को पलायन से कम नही किया जा सकता बल्कि सतत और जैविक विकास के साथ इन पहाड़ों को जैवविविधता के माध्यम से आबाद किया जा सकता है। आर्गेनिक कल्चर और हरियाली संवर्द्धन के द्वारा उत्तराखण्ड के पहाड़ों को आर्गेनिक कल्चर युक्त बनाया जाये तो इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा तथा आर्गेनिक फसलों का भरपूर उत्पादन भी होगा। पहाड़ आर्गेनिक खेती से हरे-भरे होंगे तो काफी हद तक पलायन को कम किया जा सकता है।

चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि वर्तमान समय में पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण की समस्याओं का सामना कर रहा है। यदि हम सभी अपनी जीवन शैली को बदले तो काफी हद तक पृथ्वी और प्रकृति को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है। उन्होने कहा कि जिस प्रकार गंगा अपना रास्ता पहाड़ों से निकाल कर गंगा सागर तक पहुंचती है उसी प्रकार हम सभी को भी अपने रास्ते निकालते हुये इस सुन्दर सी सृष्टि को स्वच्छ, स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त बनाना होगा और इसके लिये हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि पहाड़ों और प्रकृति को हरियाली युक्त करने के लिये मिलकर कार्य करें और इसका समाधान कहीं बाहर नहीं है ’हम है समाधान’। हमें समस्यायें भले ही पहाड़ जैसी लगती है परन्तु उन पर ठीक से चिंतन करे तो हमारी समस्यायें से ही समाधान निकल आता है। आईये आज संकल्प लें कि हम अपने ईको-सिस्टम को बनायें रखने हेतु अपना योगदान प्रदान करेंगे और एक टिकाउ माॅडल के साथ जीवन में आगे बढ़ेंगे।